Monday, December 28, 2009

पैमाना-ए-इश्क़

गर इश्क़ का कोई कोई पैमाना होता,
फिर कहाँ किसी को आज़माना होता|

कोई बेगाना कोई दीवाना होता,
फिर बीच में सिर्फ इश्के पैमाना होता|

वफाई-बेवफाई का कोई अफसाना होता,
फिर शमा जलती मगर कहाँ परवाना होता|

उल्फत जफ़ा का कोई फ़साना होता,
बीच में पैमाना और उसी को आज़माना होता|

कसमों-वादों को फिर कहाँ'शकील' आज़माना होता,
हम आमने-सामने होते मगर बीच में पैमाना होता|

Sunday, December 27, 2009

दामन-ए-ख़ार

उम्रे-ए-हयात पा कर ख़ुश हो गए हम,
उनके सितम पर रह गये मुस्करा के हम|

हस्ती मिटा बेठे उनके हज़ूर जा के हम,
बेनूर हो गए उनसे नज़रे मिला के हम|

बच न सके उनके हुस्न की अदाओं से हम,
बैठे नहीं सकूँ से हुस्न को आज़मा के हम|

ग़म में ही पिन्हाँ था हमारी ख़ुशी का राज़,
ख़ुश न रह सके ग़म से निजात पा के हम|

राहे यार पे चल पड़े थे खारों पे नंगे पाँव हम,
दामन बचा न सके अपना'शकील' खारों से हम|

(पिन्हाँ-छिपा हुआ)

Thursday, December 17, 2009

दूरियाँ

मुम्किन नही की तुमसे बिछुड़ जाए हम,
बिछुड़े कभी तो अपनी मजबूरियों से हम|

दूरियाँ तो बढ़ गई है दुनिया-ए-जहाँ में,
आओं बढाए क़दम फिर इब्तिदा में हम|

ये दिल की दूरियाँ कहाँ मुनासिब है सब पे,
क्यों पूछ रहे है राहे दूरियाँ जहाँ से हम|

बेइख्तियार नाप लिया दूरियों का सितम,
शर्मिंदा हो रहे है जहाँ की दूरिओं से हम|

उनकी दूरियों ने ही सहरा दिया'शकील' हमें,
डरते है बिछुड़ न जाय दूरियों से हम|

Tuesday, December 15, 2009

तलबे मलाल

निगाहे नाज़ ने हमारा हाल बेहाल कर दिया,
ऐ हुस्ने याराँ तुने ये क्या कमाल कर दिया |

पर्दे में देख तुझे हुस्नआरा हमने सलाम कर दिया,
हिजाब तो शर्मा गया नज़रों ने कमाल कर दिया|

पर्दा नशीं तेरे सितम का बहुत-बहुत शुक्रिया,
दे कर गमे-इश्क़ मुझे तुने निहाल कर दिया|

तुझको मै याराँ क्यों हसीन सितमगर कहूँ ,
एक न चीज़ को तुने क्यों पामाल कर दिया |

अफ़सोस तो सिर्फ तेरे दीदार का है 'शकील',
तेरे निक़ाबे रुख ने हमे तलबे मलाल कर कर|

(हुस्नआरा-सुन्दर,तलब-इच्छा,पामाल-मुसीबतजदा,
मलाल-रंज )



बेतकाज़ा

ये तो तुम थे जो हमें राह दिखलाते रहे,
हम तो मंज़िलों पर भी ठोकरे खाते रहे|

तेरी रहनुमाई से हम रहे साबित क़दम,
वरना सैकड़ों दौरें तूफाँ हमें मिटाते रहे|

वो तेरी मेहरबानियाँ वो तेरा रहमों-करम,
मुश्किलों में भी हमें खूब मज़े आते रहे|

हर मन्ज़िल औज पाकर फ़ानी बन गई,
तेरी यादों को हम बार-बार दोहरते रहे|

वकारे हस्ती रौशनी-ए-अमन से ख़ाली रही,
दो चिराग़ ज़िंदगी भर अँधेरे में टकराते रहे|

ज़िंदगी भर रहा ज़ुल्मते दौराँ में गुज़र-बसर,
फिर भी अख्वासों को हम नज़र आते रहे|

बेतकाज़ा कुछ न पाया बारगाहे इश्क़ में'शकील',
क़िस्मत में ही कुछ न था हाथ फैलाते रहे|

(औज-बुलन्दी, अख्वास-दुष्ट)


Thursday, December 3, 2009

दर्द

क्या कहूँ किस से कहूँ दर्द कोई सुनता नही,
दिल की लगी ख़ुद दिल अपनी सुनता नही|

दास्ताने दर्द कहूँ किससे मै अपनी जहाँ में,
बादर्द जहाँ में बेदर्द कोई मुझे मिलता नही|

चीख़ना- चिल्लाना बेइंतिहा है दुनिया में,
क्या करूँ आवाज़ मेरी कोई सुनता नही|

बस्तियों के जहाँ में घर कोई दिखता नही,
इतने बड़े जहाँ में अहले बशर मिलता नही|

रौशन है आफ़्ताब पर कोई दिखता नही,
तन्हा है सफ़र हम सफर कोई मिलता नही|

कहाँ रुकूँ कहाँ जाऊँ इस जहाँ में 'शकील',
दूर तक कोई मुक़ाम अपना दिखता नही|


Wednesday, December 2, 2009

ग़ुस्सा

आप ग़ुस्सा ज़रा शराफ़त से कीजिये,
अदावत ही सही पर ज़रा नफ़ासत से कीजिये|

दिल का क्या आईना है टूट जायेगा ,
आप अपना वार ज़रा नज़ाकत से कीजिये|

वफ़ा न सही हम से जफ़ा ह़ी कीजिये,
मगर ख़ुद अपने दिल से ज़रा नदामत न कीजिये|

हमें कोई शिकवा न शिकायत है तुमसे,
जो भी कीजिये आप ज़रा अक़ीदत से कीजिये,

ख़ामोश निगाहों से यूँ गज़ब न कीजिये,
मेरे दिल पर वार आप ज़रा लताफ़त से कीजिये|

हया का तुम्हे वास्ता हम से पर्दा न कीजिये,
ग़ुस्सा ही सही 'शकील' आप ज़रा नज़ाबत से कीजिये|

(नफ़ासत-नर्मी से, नज़ाकत-कोमलता,वफ़ा-निर्वाह,
जफ़ा-अत्याचर,लताफत-मृदुलता,नदामत-अफ़सोस,
अक़ीदत-आस्था,नज़ाबत-शराफ़त)

Friday, November 27, 2009

इन्सान

जब इंसा से ही इंसा नफ़रत करेगा,
तो ख़ुदा से क्या मोहब्बत करेगा |

जब ख़ुद ही गुमराही पर चलेगा,
तो किस की क्या रहबरी करेगा|

बेअमल हो जब तेरी ही हयात,
तो फ़िर कैसे ख़ुद बंदगी करेगे|

उजाड़ के ख़ुद अपना चमने गुल,
तो कोई कैसे बागवानी करेगा|

बुझा दिए अपने ज़मीर के चिराग़,
तो दुनिया में कैसे रौशनी करगे|

जो ख़ुद बेहयाई की राह पर चलेगा,
फ़िर कोई क्या किसी से हया करेगा|

इन्सान तो वो है इन्सान 'शकील',
जो सारी मख्लूक़ से प्यार करेगा|

(बेअमल-निकम्मा/लोकाचार रहित,
हयात-जीवन,बेहया-बेशर्म,हया-शर्म,
मख्लूक़-मनुष्य,बंदगी-पूजा)

गमे -इश्क़

इश्क़ में गमे दिल दिया मुझे,
उपर वाले ने आख़िर क्या दिया मुझे|

मेरे दर्दे दिल के गमे मिज़ाज ने,
आख़िर मुस्कराना सिखा दिया मुझे|

लुत्फे मै की कोई बात नही साक़ी,
ज़हर ने भी खूब लुत्फ़ दिया मुझे|

जब भी गमे इश्क़ से घबरा गया,
इश्क़ ने ख़ुद सहारा दिया मुझे|

हयाते गफ़लत थी ज़िंदगी मेरी'शकील'
दफ्तन इश्क़े आवाज़ ने चोंका दिया मुझे|


Sunday, November 22, 2009

चिराग़

जब से समझ में आये इसरार बे-ख़ुदी के,
उठाने लगे है पर्दे दिल से ख़ुद आगाही के|

जिस का सुरूर हस्ती जिसका ख़ुमार मस्ती,
ऐ दिल नवाज़ साक़ी दे दो-चार घूँट उसी के|

हर संगेदर का बोसा हर आस्ताँ पे सिजदा,
आये न फ़िर भी हमको आदाब ज़िन्दगी के|

मैं क्या बताऊँ था फ़क्र उम्रे रवाँ को हासिल,
मुश्किल से हाथ आये थे दो-चार दिन ख़ुशी के|

अब तो ज़िद है पायगे मर्हले मक्सदो के,
लेंगे न हरगिज़ अहसाँ अब बंदगी के|

ख़ुद्दारी ने दिए है अहसास अब हमें ख़ुदी के,
बुझने न देंगे'शकील'अब ये चिराग़ रौशनी के|

(इसरार-भेद,बेख़ुदी-अचैतन्य,आगाही-जानकारी\ग्यान,
ख़ुमार-नशा,सुरूर-हर्ष, संगेदर-मन्दिर का दरवाज़ा,
आस्ताँ-पीर का घर,आदाब-शिष्टाचार,मर्हले-गंतव्य )




Monday, November 2, 2009

अजब तमाशा


फ़लक की गर्दिशों के वो रंग देखे,
निज़ामे ज़िन्दगी के बदलते ढंग देखे|

जो रहते थे खुशियों में हमदम,
मुश्किलों में दुश्मनों के संग देखे|

रिश्तों को ऐसे बनते-बिगड़ते देखे,
कभी भाई तो कभी लड़ते जंग देखे|

साहिल पर बहुत जोशों उमंग देखे,
मझधार में नाखुदा भी दंग देखे|

कौन है अपना कौन है पराया,
बदलते मिज़ाजों के संगम देखे|

कभी खुशी तो कभी रंज देखे,
मौसमे बहाराँ के क्या-क्या तंज देखे|

दिलो को कभी संग तो कभी कंद देखे,
इंसानी फित्रतों के बहुत से शंग देखे|

कभी गंज खुले तो कभी तंग देखे,
किस्मत के बनते-बदलते यंग देखे|

दुनिया भी क्या अजब तमाशा है'शकील',
पल-पल बदलते उसके सब रंग देखे |

(फ़लक-आसमान,निज़ाम-व्यवस्था, संग-साथ,साहिल-किनारा,नाखुदा-नाविक, रंज-ग़म,कंद-मीठा,तंज-ताना, फ़ित्रत-प्रकृति,संग-पत्थर,शंग-चंचल,यंग-क़ानून,गंज-ख़जाना)

Wednesday, October 21, 2009

हिजाब


उनके हुस्न का बे-हिजाब होना था,
फ़िर तो इशक़ को बेताब होना था|

मेरे दिल का हाल न पूछो यारों,
उसका हाल तो बेहाल होना था|

शबाब हुआ जो उनका जलवागर,
हर शय को तो खाक होना था |

हौशा में आए तो आए कोई कैसे,
निगाहों से उनकी फ़िर वार होना था

उनका जमाले जलाल था हर तरफ,
हमारे हाल का मलाल किसे होना था|

खुदा बचाए इनकी शौक अदाओं से 'शकील',
हमें तो हर हाल में हलाल होना था|

(हिजाब-पर्दा, शबाब-जवानी, शय-वस्तु, मलाल-दुःख, जमाल-सौन्दर्य, जलाल-प्रताप)

Sunday, October 18, 2009

शबनम


जो औरो के लिए बसर कर दे ज़िन्दगी अपनी,
उनकी जिंदगी कभी मुख्तसर नही होती|

जो चिराग़ बन कर जलते हो सरे-आम,
उन्हें अंधेरो से कभी दिललगी नही होती|

जो जीते हो किसी की हसरत बन कर,
उन्हें किसी से कोई दुश्मनी नहीं होती|

जो चलते हो काँटों भरी राहों पर अक्सर,
उन्हें मंजिलों की जुस्तजू नहीं होती|

जो खिलते है फूल बन कर सरे-राह,
उन्हें काँटों से कभी दोस्ती नहीं होती|

जो गुल महकते है हर हल में 'शकील',
उन्हें शबनम से कोई बंदगी नहीं होती|



Saturday, October 17, 2009

मुबारकबाद


तेरे चिराग रोशन रहे ज़माने में,
हमें भी रोशनी मिले तेरे आस्ताने में|

सितारे चमकते रहे तेरे आशियाने में,
हमें भी शरफ मिले तेरे दौलत खाने में|

तेरा इकबाल बुलंद रहे हर ज़माने में,
हमें भी दुआए मिले तेरे इबादत खाने में|

अंधेरों को दूर कर तू नूर बन कर,
हमें भी जिला मिले तेरे सरपरस्ताने में|

मुबारक हो सब को रोशनी और खुशियों का दिन,
सब को मिले खुशियाँ 'शकील'खुदा के ख़जाने में|

(आस्ताना-ऋषी का आश्रम,जिला-आभा,शरफ-सम्मान,सरपरस्ताना-पोषण)

Tuesday, October 13, 2009

शब की तारीकियाँ


जब मेरे ख़्वाब में वो दीदारे यार आया,
तो फ़िर आँखों में नींद न ख़्वाब आया|

शब की तारीकियों में न चैन न कुछ याद आया,
तमाम रात बस आया तो ख्याले यार आया|

मैं हूँ वो गमे इशक़ का मारा, नसीब में जिसके,
आया तो बस यारे गम का सवाल आया|

हज़ारों तारों से शब पर रौनके बहार आई,
महताब से तारीकियों पर शबाब आया|

शमा को रौशन देख परवाने कहने लगे,
क़यामत है या रात में कोई आफ़ताब आया|

झुकी है शब की तारीकियों में आँखे महताब की,
वो कौन है 'शाकील' जिससे उसे हिजाब आया|

( शब की तारीकियाँ-रात का अँधेरा,महताब-चाँद,आफ़ताब-सूरज,हिजाब-पर्दा )


Tuesday, September 29, 2009

सफ़र


सफ़र-ए-ज़िंदगी में रास्ते तलाशते चलो,
बस्तियों में इन्सान तलाशते चलो|

हैवानियत के दौर में ख़ुद को बचा के चलो,
रास्ता न मिले तो रास्ते बना के चलो|

राहे मुश्किल है ज़रा संभल के चलो,
पिछे न देखिये अपने मुकाम पे चलो|

कयाम है ज़िंदगी का आखरी पड़ाव,
ज़िंदगी में अपना वक़ार बने के चलो |

खिजायों में चलो या बहारों में चलो,
काँटों से अपना दामन बचा के चलो|

रुकना नही सफ़र का मकसद चलते चलो,
मुश्किलों में 'शकील' हौसला बना के चलो|

Monday, September 28, 2009

रावण



रावण भी आज हम पर खूब मुस्करा रहा है,
उसे हर चेहरे में अपना चेहरा नज़र आ रहा है|

कहाँ ढूंढे वो मर्यादित पुरूष राम को इस भीड़ में,
उसे हर इन्सा अमर्यादित नज़र आ रहा है|

मिट जायगी उसकी हस्ती जल कर एक दम,
उसे हर इन्सा में छिपा बारूद नज़र आ रहा है|

बुराई पर अच्छाई की विजय घोष है चारो तरफ़,
उसे तो अच्छाई पर बुराई का राज नज़र आ रहा|

वो तो शर्मिंदा है अपनी करनी पर सरे-आम,
उसे हर तरफ बेशर्मी का आलम नज़र आ रहा है|

सत्य के उस युग में वो अकेला असत्य था,
उसे आज हर इन्सा झूठा नज़र आ रहा है|

हर इन्सा मुस्करा रहा है आज रावण वध पर'शकील',
पर आज दशानन्द हमारी हालत पर मुस्करा रहा है|

Thursday, September 17, 2009

जफ़ा

मुझ पर तेरी ज़ुल्मत कहाँ तक,
ये जफ़ा ये सितम कहाँ तक|

ये तेरे हुस्न की अदाए है याराँ,
तेरा ग़म आख़िर उठाये कहाँ तक|

सितम है या करम आजमाए कहाँ तक,
ज़ख्मे दिल अपने गिनाये कहाँ तक|

तोहमत है हम पर बे-वफाई का तेरा,
गिला अपने दिल का सुनाये कहाँ तक|

ये हुस्नों अदायों की घटाए कहाँ तक,
ये बिजलियाँ हम पर'शकील' गिरेगीं कहाँ तक|

Saturday, September 12, 2009

आईना

आईना भी अजब तमाशा है जहाँ में,
हर तमाशे का यहाँ नया अंदाज़ देखा|

आईने में जो अपना नक्शे सिंगार देखा,
बाहरी नक्श को आईने में बाहर देखा|

जो नक्श, आईने में हमने बाहर देखा,
जो देखा,सिर्फ़ एक आरिज़ी ख्वाब देखा|

जब आईने दिल में हमने झांक देखा,
पिनहाँ वक़ार को आईने दिल में साफ़ देखा|

क्या कहूँ आईने दिल का क्या अंदाज़ देखा,
ख़ुदा का नूर और उसका दीदार साफ़ देखा|

बेनज़ीर वक़ार की वो अज़्मत का क़माल,
जो न सुना न कोई दुसरा वक़ार देखा|

हमने दिल में वो उमड़ता इश्क़े यार देखा,
दिल के सिवा न कहीं और प्यारे-यार देखा|

दिल है या इश्क़ है बला का पैमाना 'शकील',
एक जहाँ का इश्क़ और शिकेबे यार देखा|

(पिनहाँ-गुप्त, बेनज़ीर-अनुपम,आरिज़ी-अस्थाई,वकार-गंभीरता
शिकेब-सब्र, अज़मत-सम्मान)




Friday, September 11, 2009

अरमां

गमे इश्क़ में हम यार मारे जायगे,
इस जहाँ से कहीं जब उस जहाँ जायंगे|

कुछ इरादा जो हमने किया उधर का,
हम नही उनमे जो बिन बुलाये जायगे |

तू जलाती है हमें ऐ शमा ! देखना,
फलक तक हमारी आहों के शौले जायंगे|

इश्क़ क्या है बतायंगे तुझे ऐ दरिये हुस्न ,
एक दिन हम भी समन्दर पार उतर जायंगे|

बहुत है तमन्नाए अभी 'शकील' अपनी बाक़ी,
होंगी सभी ज़मींदोज़, अरमां अधूरे जायगे|





Tuesday, September 8, 2009

खुदपरस्त

तू कैसा तेरा मैक़दा कैसा साकी,
तुझसे मिलकर भी है अब प्यास बाकी|

अब क्या करेगें मैक़दे का साकी|
न पीने की आरज़ू न अब तशनगी बाकी|

जब दो क़दम चलने को है मजबूर,
न सफरे शौक न अब मंज़िले तलब बाकी|

गुलिस्ताँ को लग गई खिजा की नज़र,
फूलों में शगुफ्तगी न अब ताज़गी बाकी|

खवाहिशे तो है फ़ित्रते नफस की तड़फ
न रंजो अलम न अब दर्दो सितम बाकी|

इस खुदपरस्त जहां में अब 'शकील',
न दोस्ती न किसी से अब दुश्मनी बाकी|

Thursday, August 27, 2009

बेताब-दिल

जब वो याद आये, दर्दे-जिगर होने लगा,
चश्म दे गए धोखा, दर्दे-असर होने लगा|

मेरा दिल,कशिश से किस कदर रोने लगा,
लाख चाह रोने पे काबू,उल्टा असर होने लगा|

जो ख़बर उनकी आई दिल में कुछ होने लगा,
ख़ुद से मैं,मुझसे ख़ुद,दिल बेख़बर होने लगा|

जो हमने सुनाई अपनी दास्ताँ- ए-हाले दिल,
हर तरफ़ चश्म तर, माहौल नम होने लागा|

जाने किसने छेडी दास्ताँ- ए-चश्म नम मेरी,
महफ़िल में हर ज़ुबां कियों ज़िक्रे दर्द होने लागा|

उनके कूचे में जाना ही पड़ेगा , अब हो जो हो,
जाने कियों 'शकील' फ़िर दिल बेताब होने लगा|



Friday, August 21, 2009

बंदगी

अदम में थी मेरी रुह जसदे खाकी से पहले,
मुझे कौन जानता था मेरी ज़िन्दगी से पहले|

इताअतो-बंदगी नही अब ज़िन्दगी से पहले,
आज़ाद है ज़िन्दगी मेरी, तेरी पाबंदी से पहले|

मेरी ज़िन्दगी में है अब वहम ऐ खुदा! तेरा,
वरना तू क्या ख़ुदा था मेरी ज़िन्दगी से पहले|

कौन जानता है तेरा फ़ैसला रोज़े अज़ा से पहले,
इस जहाँ में है मेरी ज़िन्दगी तेरी बंदगी से पहले|

मेरी ज़िन्दगी है तो बंदगी है जहाँ में 'शकील',
वरना कौन पूछता बंदगी को ज़िन्दगी से पहले|
( अदम-परलोक, जसदे खाकी-मिटटी से बना शरीर,वहम-भ्रम,
रोज़े अज़ा-प्रलय, इताअत-आज्ञा-पालन )

Tuesday, August 18, 2009

बेहतर दोस्त

अब कहाँ है दुनियाँ में सच्चे दोस्त,
अब नाम के रह गए जहाँ में दोस्त|

कहाँ दोस्त एक रंग, जब दोस्ती हो दो रंग,
सुबह है वही दुश्मन, जो शाम को हो दोस्त|

मेरे लिए तो बेहतर है वो दुश्मन अपना,
जो मानता है, इस दुश्मन को भी दोस्त|

चाहता है दुश्मन भी वफाये दुशमनी दुश्मन से,
तू पहले कर ख़त्म, खुदपरस्ती को दोस्त|

दोस्ती तुझसे जो ऐ दोस्त!,हुई जंजाल अपनी,
किसी के दुश्मन, रहे किसी के दोस्त|

होते है दोस्त पहली मुलाक़ात में सब 'शकील',
शख्स वो है बेहतर जो आख़िर तक रहे दोस्त|

Saturday, August 15, 2009

दोस्त

यह जंग तो मैं कब का जीत गया होता,
यारों की दगाबाज़ियो से जो बच गया होता|

दुशवारिये वक़्त पल भर में गुज़र गया होता,
दोस्तों के भरोसे से मैं जो बच गया होता|

नक्बते आज़माइशो में कामयाब हो गया होता,
रफ़ीक़ो का निक़ाब जो अयाँ हो गया होता|

अपनों की शिकायतों से तो मैं बच गया होता,
दोस्तों के सितम से जो सताया न गया होता|

दुशमनों की दुशमनी का क्या गिला करे 'शकील',
यारों की मेहरबानियों से जो रुलाया न गया होता|

( अयाँ-स्पष्ट, निक़ाब-पर्दा, नक्बत-निर्धनता, रफ़ीक़-मित्र )

Friday, August 14, 2009

राम-राज्य

सुख-शान्ति का संकल्प हमारा हो,
आज़ादी का यही नारा हमारा हो|

दुनिया में फैला भाईचारा हो,
आज़ादी में यही ध्येय हमारा हो|

रक्त-पात, भय-मुक्त देश हमारो हो,
आज़ादी का प्रथम यही लक्ष्य हमारा हो|

राम-राज्य की जीवन में बहती धारा हो,
समृद्धि , उत्थान का मक्सद हमारा हो|

जन-जन का कल्याण हो 'शकील',
आज़ादी का यही प्रमाण हमारा हो|



आज़ादी

मर्हबा मर्हबा आज़ादी आई है,
खुशियों का अम्बार लाई है|

हर ज़र्रे पर खुशियाँ छाई है,
यह देख खुदाई भी मुस्कराई है|

शहीदों की शाहदत रंग लाई है,
हर फ़ज़ा में आज़ादी आई है|

नैक-नीयती का पैगाम लाई है,
अमन-चैन का ईनाम लाई है|

इम्तिहान की नई सुबह आई है,
मोहब्बत का नया साया लाई है|

हर एक की तमन्ना है खुशहाली,
हमारी आज़ादी यह उम्मीद लाई है|

मर्हबा मर्हबा आज़ादी आई है ,
हर सिम्त नई उमंग लाई है|

पुर सकूँ ज़िन्दगी हो सब की,
दुआओं का यह सिलसिला लाई है|

बड़े जद्दो-जेहद से आजादी आई है,
ज़ुल्मो-सितम सह हमने इसे पाई है|

देखना है कितना ज़ोर बाजू-ए-लाल मे है,
कितनी मशक्कत रोटी-ए-हलाल मे है|

मर्हबा मर्हबा आज़ादी आई है,
नई सबाए, नई बहारे 'शकील' लाई है|

Thursday, August 13, 2009

दुआ

मेरे खुदा है इल्तज़ा,
अपनी रहमतों से ख़ूब देना|

गर देना आजिज़ी देना,
मगर तक़ब्बुर की अदा देना|

गलतियाँ तो गलतियाँ है,
मुझे यह एहसास देना|

मांग सकूँ ग़लतियों की माफ़ी,
खुदा मुझे वो ज़ंबा देना|

मेरे मौला मेरे वक़ार को,
वो किरदार असरदार देना|

बदअख्लाकी से मैं बचूं ,
अख्लाकी
का वो मेयार देना|

एशो-इशरत तो तेरी नेअमत है,
बन्दों को तू ख़ूब देना|

मगर उससे पहले मेरे खुदा,
इंसानियत का सबक़ देना|

मंज़र--नज़र के लिए,
मुझे नज़र--नूर देना|

मगर पहले मेरी आँखों को,
हया का 'शकील' शुऊर देना|
(नेअमत-उपहार,आजिज़ी-नम्रता,मेयार-स्तर,शुऊर-विवेक)

Tuesday, August 11, 2009

गुल

क़ुर्बते गुल किस कदर जाँबख्श है,
ये खारों से पूछ|

चाँद की तन्वीर में क्या लुत्फ़ है,
ये तारों से पूछ|

नशाये सहबा में क्या लज्ज़त है,
ये मैख्वारो से पूछ|

चार:साजी में क्या मज़ा है,
ये बीमारों से पूछ|

शबाबे हुस्न की क्या मस्ती है,
ये दीवानों से पूछ|

सुनहरी शिआओ की क्या मसर्रत है,
ये परवानो से पूछ|

गर तू न पूछ सके किसीसे कुछ,
तो आ 'शकील' के गमे दिल से पूछ|

(कुर्बत-सोहबत, जाँबख्श-प्राण देने वाला, खर-कांटे,
तन्वीर-रौशनी, सहबा-लाल शराब, चार:साजी-इलाज,
सुनहरी शिआओ-शमा की आग)



Thursday, August 6, 2009

तेरा शहर

हम तेरे शहर से निकले है गुनहगारों की तरह,
आज आज़माए गए है हम खताशियरो की तरह|

तेरी महफ़िल में नज़र उठी परेहजगारो की तरह,
हम पे इल्ज़ाम लगाये गए खतावारो की तरह|

तेरे शहर में आए थे हम वफादारों की तरह,
तेरे क़दमो से ठुकराए गये खाकसरो की तरह|

तेरी खिदमत में था सलाम खिदमतगारो की तरह,
तेरे सलूक़ से उम्मीद न थी हमें पर्ददारो की तरह|

जाने क्यों चले आए तेरे शहर में ग़मख्वारो की तरह,
सताए गए हम 'शकील' तेरे शहर में मैख्वारो की तरह|
(खताशियर -पापी, मैख्वार-शराबी )

Monday, August 3, 2009

दिल

खुदा ने बक्शा है इंसा को,
एक नन्हा सा प्यारा सा दिल|

इस में दिल उस में दिल,
हर सीने में धड़कता है दिल|

चोट लगे तो तडफता है दिल,
खुशी में बल्लियो उछलता है दिल|

गर हो इश्क़ दिल में,
तो खिचता ही दिल|

नफरतों से यारों हमेशा,
सिसकता है दिल|

बदी में मुरझाता है दिल,
नेकी में खिलता है दिल|

प्यार है दवाए दिल,
नफरत है सजाए दिल|

ऐ दोस्त!बड़ा नाज़ुक है दिल,
ये तेरा दिल ये मेरा दिल|

संभालोगे तो संभल जाएगा,
वरना चूर-चूर हो जाएगा|

ये नन्हासा- प्यारसा दिल,
'शकील' ये तेरा दिल ये मेरा दिल|




Friday, July 31, 2009

रंगे-ऐ-ज़िन्दगी

बहारों खिजां की नशेबोफराजियाँ माज़ अल्लाह,
कभी चमन से तो कभी खार जार से गुज़रे|

क्या-क्या रंग देखे मैखान-ऐ- जहाँ में हमने,
कभी सोचो फ़िक्र से तो कभी कैफ़ो खुमार से गुज़रे|

उम्र भर पाया न सुराग़ तेरे ऐ ज़िन्दगी हमने,
तेरी तलाश में किस-किस दयार से गुज़रे|

कभी तशनगी कभी मैकशी अजब है ये ज़िन्दगी,
कभी हवाये नासाज़गार से तो कभी फिज़ाए खुशगवार से गुज़रे|

कितने दिलचस्प मर्हला है सफ़र का ये ज़िन्दगी,
कभी मंजिले हयात से तो कभी सरेदार से गुज़रे|

कभी तन्हाईओं का तो कभी सोह्बतो का रंग है ज़िन्दगी,
कभी विसाल से तो कभी इंतजार-ऐ-यार से गुज़रे|

कभी सितम की तो कभी मेहरबानियों की पैकर है ज़िन्दगी,
कभी नाखुशी से तो कभी 'शकील' खुशगवारी से गुज़रे|

सरसब्द

पड़ी न थी अभी बुनियाद आशियाने की,
सिमट के आगई सब बिजलियाँ ज़माने की|

जवानी में था जब जोश-ऐ-मैयकशी अपना,
बड़ी हसीन थी दुनिया शराबखाने की|

परवाज़ ने ली थी अंगडाई अभी शबाब की,
नज़र लग गई हुसन पे सय्यादे कैदखाने की|

किसी से कीजिये क्या रस्मे दोस्ती का गिला,
बदल रही हैं मुकर्रम हवाये ज़माने की|

हसरत थी चुनने की सरसब्द गुलिस्ताने 'शकील',
दिल की दिल में रह गई हसरत दीवाने की|

( सरसब्द-फूलों की टोकरी में सबसे खुबसूरत और उत्तम फूल )

Monday, July 27, 2009

हकीक़त

ज़िन्दगी की हकीक़त जब रौशन होती है,
अंधेरों में ज़िन्दगी गुज़र गई होती है|

बेदारी तो लाज़िम है नींद के बाद,
ज़िन्दगी ख्वाबों में गुज़र गई होती है|

शब की तारिकियों में न उलझ सितारों में,
सेहरे इंतजार में रात गुज़र गई होती|

उम्रे शबाब में तो कहाँ फुर्सत होती है,
होश आने पर उम्र गुज़र गई होती है|

ख़बर जब होती है तेरे तिलिस्म की 'शकील',
हयाते आरज़ू ख़ुद जुस्तजू बन गई होती है|

Sunday, July 19, 2009

ग़म

मिज़ाजे ग़म की जिन्हें ख़बर नही होती,
ख़ुशी में भी उन्हें ख़ुशी मय्यसर नही होती|

जो जलते है चिराग़ बन के तेरी महफिल में,
उनके घर में कभी रौशनी नही होती|

ग़म-ऐ- इश्क में जब तक न हुस्न शामिल हो,
ग़म-ऐ- मोहब्बत में कभी दिलकशी नही होती|

बे-वफाई के इस जहाँ में वफ़ा का नाम न ले,
वफ़ा के नाम से अब हमें ख़ुशी नही होती|

मेहरबनिया तो बड़ी चीज़ है इंसानियत के पहलू में,
दुश्मनी में भी तो अब शाइस्दगी नही होती|

शरीक़-ऐ- गम बनाने चले हो किसे 'शकील'
शरीक़-ऐ- ग़म ये दुनिया कभी नही होती|

Saturday, July 18, 2009

सलीका

सलीका कहाँ था अहले- दुनिया को जीने का,
जीने वालों को करीने की हमने अदा दी है|

ख़ुद रहे तशन लब मगर उठे घटा बन कर,
इस तरह प्यास सहरा की हमने बुझा दी है|

कभी शराब तो कभी मय बने तशनगी तेरे खातिर,
रिन्दों को मय तो सहरा को हमने घटा दी है|

कभी तूफां को कभी मझधार को हौसलों को अदा दी है,
इस तरह साहिल को हमने आबरू की सदा दी है|

बने शम्शो कार शमाओ 'शकील',
नूर बन कर अंधेरों को हमने जिला दी है|

Wednesday, July 15, 2009

वक़्त

वक़्त जिससे खफा हो जाए,
हर खुशी उससे जुदा हो जाए|

दिन का चैन न रात का करार मिले,
हर साँस उस की सज़ा हो जाए|

इंक़लाब को भी हो हैरत उस पर,
पल भर मे उस का खाना ख़राब हो जाए|

बर्क़ उड़े और इस तरह गिरे,
की दम भर में आशियाँ धुआं हो जाए|

जीये और जिंदा ज़रूर कहलाये,
मगर ज़िन्दगी उस की कज़ा हो जाए|

चांदनी रात हो या उजाला दिन का,
हर तरफ़ उसके लिए अँधेरा हो जाए|

क़यामत है गर्दिशे दौरा का सितम,
जिस पर भी हो तबाह हो जाए|

हम अपनी मुसीबतों का क्या गिला करें,
डरते है कहीं वक्त और ना खफा हो जाए|

खुदा महफूज़ रखे गर्दिशे दौरां से,
जिस पर भी नजर पड़े खाना ख़राब हो जाए|

वक़्त की फिर मुझे पर इनायत हो जाए,
अब मेरी कबूल मेरी ये दुआ हो जाए|

बहुत उठा चुका मैं 'शकील'अपनी खतओ की सज़ा,
अल्लाह माफ़ मेरी अब सज़ा हो जाए|

Tuesday, July 14, 2009

खामोशी

खामोशी की भी कोई ज़ंबा होती है,
खामोश मगर असरदार होती है|

कहेने को बहुत है मगर कंहा बात होती है,
बिना कहे जिगर के आर-पार होती है|

मुलाक़ात होती है, कंहा आवाज़ होती है,
निगाहों-निगाहों मैं बात होती है |

ना वो बात करते है ना हमसे बात होती है,
बिना ज़ंबा भी उन से दुआ-सलाम होती है|

खामोशी में भी उनकी कोई नई बात होती है,
कहे ना सके जो 'शकील' वो बात होती है|

खुशी

वक्त से खुशी उधार लेते हैं,
उदास ज़िन्दगी को बहार देते हैं|

कर के खुशामद गर्दिशे दौरां की,
अपने बिगड़े हालात संवार लेते हैं|

रचा के फसले गुलों की रंगीनियां,
धुंधले माहौल को निखार लेते हैं|

ये न कोई सौदा न तिजारत है कोई,
प्यार दे कर हम उनका प्यार लेते हैं|

जहाँ भी मिल जाए घनी छांव "शकील"
घड़ी-दो-घड़ी वक्त अपना गुज़ार लेते हैं|

Monday, July 13, 2009

मन्ज़िल

राज़ ऐ-ज़िन्दगी सुना रहा हूँ,
खली हाथ मैं जा रहा हूँ|

लोग
रहे है दर को मेरे,
बेबस कुचे से मैं जा रहा हूँ|

कारवा
हैं शामिल मय्यत में मेरी,
तन्हा,फ़ना होने मैं जा रहा हूँ|

कोई
रो रहा रहा, कोई हँस रहा है,
चुप -चाप कांधो पर मैं जा रहा हूँ|

कन्धा देने वालो देखों ज़रा,
जाते-जाते 'शकील' तुम को मंजिल मैं दिखा रहा हूँ|

Saturday, July 11, 2009

मौत

क्या सफेद, क्या सियाह किया ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बेमुरव्वत दगा दे गई मुझे मौत के खातिर|

क्या-क्या गुमान करते थे जिस्मे कुव्वत पर ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बेवफा तन्हा बेबस छोड़ दिया मुझे मौत के खातिर|

क्या-क्या सितम सहे हमने ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! तूने ये क्या सितम किया मौत के खातिर|

कभी रौंदा करते थे कदमो से ज़मीं को ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बे-रहम आज तूने ज़मीं दोज़ किया मुझे मौत के खातिर|

क्या-क्या नही किया हमने ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बे-दादगर तूने ये क्या सिला दिया मुझे मौत की खातिर|

कासिद तो बहुत आते रहे मौत के 'शकील' तेरे खातिर,
हम ही बे-ख़बर रहे मौत से ज़िन्दगी तेरे खातिर|

रास्ते

सफरे ज़िन्दगी में,
देखते-देखते कट गये रास्ते|

सफर दर-सफर मिल गये रास्ते,
कभी ठहरे तो कभी मिल गये रास्ते।

मंजिलो की जुस्तुजू में,
नये-नये बन गये रास्ते।

काम आयी जुनून की सरगर्मी,
बर्फ बन के पिघल गये रास्ते|

चलते-चलते सफर में,
कौसों निकल गये रास्ते|

कौन रोक सका है भला,
इन रास्तों के रास्ते|

हर मोड़ पर घर-घर में,
बन गए हजारो रस्ते|

जो रुक गये हम एक दम 'शकील
हम से आगे निकल गये रास्ते.

Friday, June 19, 2009

संग

ऐ संग तुने भी क्या किस्मत पाई है ,
हम इंसानों से बेहतरी पाई है |

तर्शे तो हैकाल बन खुदा बने,
वरना किसी दीवार की हद बने|

है तेरा नसीब कि तू तर्शेने वाले का माबूद,
और वो तेरा बंदा बने|

तुझे खाने को मेवाओं की गिजा मिले,
इंसानों को फाके या तेरे चढावे का बचा मिले|

तू फनकार के फन का करिश्मा,
और वो तेरी ज़ात का ताबेदार बने|

यही तरी बेहतरी जिसका तू मुहताज,
वो तेरी इबा दत् डट का हक़दार बने|

जिसने तुझे सजाया संवारा "शकील",
आख़िर वो फंना तू कदीम अपनी जगह बने|

Thursday, June 18, 2009

आदमी

यह आदमी को क्या हो गया ?
बे -मुरव्वत ,बेहया हो गया|

एक
दूजे से जुदा हो गया,
अपने-अपने दीन का खुदा हो गया|

यह आदमी को क्या हो गया ?
हैवानियत का नशा हो गया|

न कोई दुःख न किसी का दर्द ,
ख़ुद-परस्ती का गवाह हो गया|

कौन लुटा, कौन मरा,
खूँ सुफेद, कल्ब सियाह हो गया|

इंसानियत के रिश्तों को तोड़,
फिरका-परस्ती में मुब्तिला हो गया|

शेतानो की तो क्या कहें !
यह आदमी को क्या हो गया?
अफ़सोस बहुत अफ़सोस "शकील",
आदमी, हिंदू या मुसलमान हो गया|
बहुत मुश्किल हैं अपने सच की मुखालफत "शकील",
इतनी आसन भी नही अपने झूठ की हिमायत करना|

मेरी ज़िन्दगी मैं है मैं वहम ऐ! खुदा तेरा,
जो मैं न होता "शकील"तो तू खुदा क्या होता| |

जिंदगी

ऐ जिंदगी!क्यों इतना गुमान करती है,
ज़मीं पर रह,क्यों आसमां की बात करती है|

अपनी जुबां से कुफ्र करती है ,
क्यों अपनी उम्र की बात करती है|

ला-ऐतबार ज़िन्दगी का,
क्यों ज़िक्र-ऐ-ऐतबार करती है|

तन्हा है सफर,
क्यों कारवां की बात करती है|

फ़ना
है जिस्म-ऐ- कुव्वत,
किसपे आजमाने की बात करती है|
मौत की ख़बर नही,
क्यों ज़िन्दगी की बात करती हें|

है तेरी ख़ुद की जद्दो-जेहद इतनी,
किसके हश्र की बात करती है|

मिट जायेगी तेरी ख़ुद की हस्ती "शकील",
किसको मिटने की बात करती है||

बुलंदियां

कुछ कर गुज़र इस कदर,
कि शोहरत भी तेरा नाम पूछे |

परवाज़ कर उन बुलंदियों पर,
कि फ़राज़ भी तेरा नाम पूछे |

लोग राह तय कर,
मंजिलों पर कयाम करते हैं|

तू कुछ इस कदर कर,
कि मंजिल तेरा कयाम पूछे|

तू बन वो मुक़द्दर का सिकंदर,
कि मुक़द्दर तेरा घर पूछे|

तोड़ दे सारी किस्मत-ओ-करम कि बंदिशे,
जब पूछे हक-ओ -इन्साफ तो तेरा दर पूछे||