Thursday, August 27, 2009

बेताब-दिल

जब वो याद आये, दर्दे-जिगर होने लगा,
चश्म दे गए धोखा, दर्दे-असर होने लगा|

मेरा दिल,कशिश से किस कदर रोने लगा,
लाख चाह रोने पे काबू,उल्टा असर होने लगा|

जो ख़बर उनकी आई दिल में कुछ होने लगा,
ख़ुद से मैं,मुझसे ख़ुद,दिल बेख़बर होने लगा|

जो हमने सुनाई अपनी दास्ताँ- ए-हाले दिल,
हर तरफ़ चश्म तर, माहौल नम होने लागा|

जाने किसने छेडी दास्ताँ- ए-चश्म नम मेरी,
महफ़िल में हर ज़ुबां कियों ज़िक्रे दर्द होने लागा|

उनके कूचे में जाना ही पड़ेगा , अब हो जो हो,
जाने कियों 'शकील' फ़िर दिल बेताब होने लगा|



Friday, August 21, 2009

बंदगी

अदम में थी मेरी रुह जसदे खाकी से पहले,
मुझे कौन जानता था मेरी ज़िन्दगी से पहले|

इताअतो-बंदगी नही अब ज़िन्दगी से पहले,
आज़ाद है ज़िन्दगी मेरी, तेरी पाबंदी से पहले|

मेरी ज़िन्दगी में है अब वहम ऐ खुदा! तेरा,
वरना तू क्या ख़ुदा था मेरी ज़िन्दगी से पहले|

कौन जानता है तेरा फ़ैसला रोज़े अज़ा से पहले,
इस जहाँ में है मेरी ज़िन्दगी तेरी बंदगी से पहले|

मेरी ज़िन्दगी है तो बंदगी है जहाँ में 'शकील',
वरना कौन पूछता बंदगी को ज़िन्दगी से पहले|
( अदम-परलोक, जसदे खाकी-मिटटी से बना शरीर,वहम-भ्रम,
रोज़े अज़ा-प्रलय, इताअत-आज्ञा-पालन )

Tuesday, August 18, 2009

बेहतर दोस्त

अब कहाँ है दुनियाँ में सच्चे दोस्त,
अब नाम के रह गए जहाँ में दोस्त|

कहाँ दोस्त एक रंग, जब दोस्ती हो दो रंग,
सुबह है वही दुश्मन, जो शाम को हो दोस्त|

मेरे लिए तो बेहतर है वो दुश्मन अपना,
जो मानता है, इस दुश्मन को भी दोस्त|

चाहता है दुश्मन भी वफाये दुशमनी दुश्मन से,
तू पहले कर ख़त्म, खुदपरस्ती को दोस्त|

दोस्ती तुझसे जो ऐ दोस्त!,हुई जंजाल अपनी,
किसी के दुश्मन, रहे किसी के दोस्त|

होते है दोस्त पहली मुलाक़ात में सब 'शकील',
शख्स वो है बेहतर जो आख़िर तक रहे दोस्त|

Saturday, August 15, 2009

दोस्त

यह जंग तो मैं कब का जीत गया होता,
यारों की दगाबाज़ियो से जो बच गया होता|

दुशवारिये वक़्त पल भर में गुज़र गया होता,
दोस्तों के भरोसे से मैं जो बच गया होता|

नक्बते आज़माइशो में कामयाब हो गया होता,
रफ़ीक़ो का निक़ाब जो अयाँ हो गया होता|

अपनों की शिकायतों से तो मैं बच गया होता,
दोस्तों के सितम से जो सताया न गया होता|

दुशमनों की दुशमनी का क्या गिला करे 'शकील',
यारों की मेहरबानियों से जो रुलाया न गया होता|

( अयाँ-स्पष्ट, निक़ाब-पर्दा, नक्बत-निर्धनता, रफ़ीक़-मित्र )

Friday, August 14, 2009

राम-राज्य

सुख-शान्ति का संकल्प हमारा हो,
आज़ादी का यही नारा हमारा हो|

दुनिया में फैला भाईचारा हो,
आज़ादी में यही ध्येय हमारा हो|

रक्त-पात, भय-मुक्त देश हमारो हो,
आज़ादी का प्रथम यही लक्ष्य हमारा हो|

राम-राज्य की जीवन में बहती धारा हो,
समृद्धि , उत्थान का मक्सद हमारा हो|

जन-जन का कल्याण हो 'शकील',
आज़ादी का यही प्रमाण हमारा हो|



आज़ादी

मर्हबा मर्हबा आज़ादी आई है,
खुशियों का अम्बार लाई है|

हर ज़र्रे पर खुशियाँ छाई है,
यह देख खुदाई भी मुस्कराई है|

शहीदों की शाहदत रंग लाई है,
हर फ़ज़ा में आज़ादी आई है|

नैक-नीयती का पैगाम लाई है,
अमन-चैन का ईनाम लाई है|

इम्तिहान की नई सुबह आई है,
मोहब्बत का नया साया लाई है|

हर एक की तमन्ना है खुशहाली,
हमारी आज़ादी यह उम्मीद लाई है|

मर्हबा मर्हबा आज़ादी आई है ,
हर सिम्त नई उमंग लाई है|

पुर सकूँ ज़िन्दगी हो सब की,
दुआओं का यह सिलसिला लाई है|

बड़े जद्दो-जेहद से आजादी आई है,
ज़ुल्मो-सितम सह हमने इसे पाई है|

देखना है कितना ज़ोर बाजू-ए-लाल मे है,
कितनी मशक्कत रोटी-ए-हलाल मे है|

मर्हबा मर्हबा आज़ादी आई है,
नई सबाए, नई बहारे 'शकील' लाई है|

Thursday, August 13, 2009

दुआ

मेरे खुदा है इल्तज़ा,
अपनी रहमतों से ख़ूब देना|

गर देना आजिज़ी देना,
मगर तक़ब्बुर की अदा देना|

गलतियाँ तो गलतियाँ है,
मुझे यह एहसास देना|

मांग सकूँ ग़लतियों की माफ़ी,
खुदा मुझे वो ज़ंबा देना|

मेरे मौला मेरे वक़ार को,
वो किरदार असरदार देना|

बदअख्लाकी से मैं बचूं ,
अख्लाकी
का वो मेयार देना|

एशो-इशरत तो तेरी नेअमत है,
बन्दों को तू ख़ूब देना|

मगर उससे पहले मेरे खुदा,
इंसानियत का सबक़ देना|

मंज़र--नज़र के लिए,
मुझे नज़र--नूर देना|

मगर पहले मेरी आँखों को,
हया का 'शकील' शुऊर देना|
(नेअमत-उपहार,आजिज़ी-नम्रता,मेयार-स्तर,शुऊर-विवेक)

Tuesday, August 11, 2009

गुल

क़ुर्बते गुल किस कदर जाँबख्श है,
ये खारों से पूछ|

चाँद की तन्वीर में क्या लुत्फ़ है,
ये तारों से पूछ|

नशाये सहबा में क्या लज्ज़त है,
ये मैख्वारो से पूछ|

चार:साजी में क्या मज़ा है,
ये बीमारों से पूछ|

शबाबे हुस्न की क्या मस्ती है,
ये दीवानों से पूछ|

सुनहरी शिआओ की क्या मसर्रत है,
ये परवानो से पूछ|

गर तू न पूछ सके किसीसे कुछ,
तो आ 'शकील' के गमे दिल से पूछ|

(कुर्बत-सोहबत, जाँबख्श-प्राण देने वाला, खर-कांटे,
तन्वीर-रौशनी, सहबा-लाल शराब, चार:साजी-इलाज,
सुनहरी शिआओ-शमा की आग)



Thursday, August 6, 2009

तेरा शहर

हम तेरे शहर से निकले है गुनहगारों की तरह,
आज आज़माए गए है हम खताशियरो की तरह|

तेरी महफ़िल में नज़र उठी परेहजगारो की तरह,
हम पे इल्ज़ाम लगाये गए खतावारो की तरह|

तेरे शहर में आए थे हम वफादारों की तरह,
तेरे क़दमो से ठुकराए गये खाकसरो की तरह|

तेरी खिदमत में था सलाम खिदमतगारो की तरह,
तेरे सलूक़ से उम्मीद न थी हमें पर्ददारो की तरह|

जाने क्यों चले आए तेरे शहर में ग़मख्वारो की तरह,
सताए गए हम 'शकील' तेरे शहर में मैख्वारो की तरह|
(खताशियर -पापी, मैख्वार-शराबी )

Monday, August 3, 2009

दिल

खुदा ने बक्शा है इंसा को,
एक नन्हा सा प्यारा सा दिल|

इस में दिल उस में दिल,
हर सीने में धड़कता है दिल|

चोट लगे तो तडफता है दिल,
खुशी में बल्लियो उछलता है दिल|

गर हो इश्क़ दिल में,
तो खिचता ही दिल|

नफरतों से यारों हमेशा,
सिसकता है दिल|

बदी में मुरझाता है दिल,
नेकी में खिलता है दिल|

प्यार है दवाए दिल,
नफरत है सजाए दिल|

ऐ दोस्त!बड़ा नाज़ुक है दिल,
ये तेरा दिल ये मेरा दिल|

संभालोगे तो संभल जाएगा,
वरना चूर-चूर हो जाएगा|

ये नन्हासा- प्यारसा दिल,
'शकील' ये तेरा दिल ये मेरा दिल|