Friday, June 19, 2009

संग

ऐ संग तुने भी क्या किस्मत पाई है ,
हम इंसानों से बेहतरी पाई है |

तर्शे तो हैकाल बन खुदा बने,
वरना किसी दीवार की हद बने|

है तेरा नसीब कि तू तर्शेने वाले का माबूद,
और वो तेरा बंदा बने|

तुझे खाने को मेवाओं की गिजा मिले,
इंसानों को फाके या तेरे चढावे का बचा मिले|

तू फनकार के फन का करिश्मा,
और वो तेरी ज़ात का ताबेदार बने|

यही तरी बेहतरी जिसका तू मुहताज,
वो तेरी इबा दत् डट का हक़दार बने|

जिसने तुझे सजाया संवारा "शकील",
आख़िर वो फंना तू कदीम अपनी जगह बने|

Thursday, June 18, 2009

आदमी

यह आदमी को क्या हो गया ?
बे -मुरव्वत ,बेहया हो गया|

एक
दूजे से जुदा हो गया,
अपने-अपने दीन का खुदा हो गया|

यह आदमी को क्या हो गया ?
हैवानियत का नशा हो गया|

न कोई दुःख न किसी का दर्द ,
ख़ुद-परस्ती का गवाह हो गया|

कौन लुटा, कौन मरा,
खूँ सुफेद, कल्ब सियाह हो गया|

इंसानियत के रिश्तों को तोड़,
फिरका-परस्ती में मुब्तिला हो गया|

शेतानो की तो क्या कहें !
यह आदमी को क्या हो गया?
अफ़सोस बहुत अफ़सोस "शकील",
आदमी, हिंदू या मुसलमान हो गया|
बहुत मुश्किल हैं अपने सच की मुखालफत "शकील",
इतनी आसन भी नही अपने झूठ की हिमायत करना|

मेरी ज़िन्दगी मैं है मैं वहम ऐ! खुदा तेरा,
जो मैं न होता "शकील"तो तू खुदा क्या होता| |

जिंदगी

ऐ जिंदगी!क्यों इतना गुमान करती है,
ज़मीं पर रह,क्यों आसमां की बात करती है|

अपनी जुबां से कुफ्र करती है ,
क्यों अपनी उम्र की बात करती है|

ला-ऐतबार ज़िन्दगी का,
क्यों ज़िक्र-ऐ-ऐतबार करती है|

तन्हा है सफर,
क्यों कारवां की बात करती है|

फ़ना
है जिस्म-ऐ- कुव्वत,
किसपे आजमाने की बात करती है|
मौत की ख़बर नही,
क्यों ज़िन्दगी की बात करती हें|

है तेरी ख़ुद की जद्दो-जेहद इतनी,
किसके हश्र की बात करती है|

मिट जायेगी तेरी ख़ुद की हस्ती "शकील",
किसको मिटने की बात करती है||

बुलंदियां

कुछ कर गुज़र इस कदर,
कि शोहरत भी तेरा नाम पूछे |

परवाज़ कर उन बुलंदियों पर,
कि फ़राज़ भी तेरा नाम पूछे |

लोग राह तय कर,
मंजिलों पर कयाम करते हैं|

तू कुछ इस कदर कर,
कि मंजिल तेरा कयाम पूछे|

तू बन वो मुक़द्दर का सिकंदर,
कि मुक़द्दर तेरा घर पूछे|

तोड़ दे सारी किस्मत-ओ-करम कि बंदिशे,
जब पूछे हक-ओ -इन्साफ तो तेरा दर पूछे||