उम्रे-ए-हयात पा कर ख़ुश हो गए हम,
उनके सितम पर रह गये मुस्करा के हम|
हस्ती मिटा बेठे उनके हज़ूर जा के हम,
बेनूर हो गए उनसे नज़रे मिला के हम|
बच न सके उनके हुस्न की अदाओं से हम,
बैठे नहीं सकूँ से हुस्न को आज़मा के हम|
ग़म में ही पिन्हाँ था हमारी ख़ुशी का राज़,
ख़ुश न रह सके ग़म से निजात पा के हम|
राहे यार पे चल पड़े थे खारों पे नंगे पाँव हम,
दामन बचा न सके अपना'शकील' खारों से हम|
(पिन्हाँ-छिपा हुआ)
Sunday, December 27, 2009
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kya baat hai sirji
ReplyDeletekinke dar pe jaa ke hasti mita baithe
is umra me bhi usna ko aajma rahe hai
dad deni padegi hosle ki
bhabhiji ka bhi dar nahi lagta.
vaakai zigar to hai bande me.
padosi se bhi jyada