Tuesday, July 14, 2009

खामोशी

खामोशी की भी कोई ज़ंबा होती है,
खामोश मगर असरदार होती है|

कहेने को बहुत है मगर कंहा बात होती है,
बिना कहे जिगर के आर-पार होती है|

मुलाक़ात होती है, कंहा आवाज़ होती है,
निगाहों-निगाहों मैं बात होती है |

ना वो बात करते है ना हमसे बात होती है,
बिना ज़ंबा भी उन से दुआ-सलाम होती है|

खामोशी में भी उनकी कोई नई बात होती है,
कहे ना सके जो 'शकील' वो बात होती है|

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