Friday, July 31, 2009

रंगे-ऐ-ज़िन्दगी

बहारों खिजां की नशेबोफराजियाँ माज़ अल्लाह,
कभी चमन से तो कभी खार जार से गुज़रे|

क्या-क्या रंग देखे मैखान-ऐ- जहाँ में हमने,
कभी सोचो फ़िक्र से तो कभी कैफ़ो खुमार से गुज़रे|

उम्र भर पाया न सुराग़ तेरे ऐ ज़िन्दगी हमने,
तेरी तलाश में किस-किस दयार से गुज़रे|

कभी तशनगी कभी मैकशी अजब है ये ज़िन्दगी,
कभी हवाये नासाज़गार से तो कभी फिज़ाए खुशगवार से गुज़रे|

कितने दिलचस्प मर्हला है सफ़र का ये ज़िन्दगी,
कभी मंजिले हयात से तो कभी सरेदार से गुज़रे|

कभी तन्हाईओं का तो कभी सोह्बतो का रंग है ज़िन्दगी,
कभी विसाल से तो कभी इंतजार-ऐ-यार से गुज़रे|

कभी सितम की तो कभी मेहरबानियों की पैकर है ज़िन्दगी,
कभी नाखुशी से तो कभी 'शकील' खुशगवारी से गुज़रे|

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