Friday, July 31, 2009

सरसब्द

पड़ी न थी अभी बुनियाद आशियाने की,
सिमट के आगई सब बिजलियाँ ज़माने की|

जवानी में था जब जोश-ऐ-मैयकशी अपना,
बड़ी हसीन थी दुनिया शराबखाने की|

परवाज़ ने ली थी अंगडाई अभी शबाब की,
नज़र लग गई हुसन पे सय्यादे कैदखाने की|

किसी से कीजिये क्या रस्मे दोस्ती का गिला,
बदल रही हैं मुकर्रम हवाये ज़माने की|

हसरत थी चुनने की सरसब्द गुलिस्ताने 'शकील',
दिल की दिल में रह गई हसरत दीवाने की|

( सरसब्द-फूलों की टोकरी में सबसे खुबसूरत और उत्तम फूल )

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