Thursday, August 27, 2009

बेताब-दिल

जब वो याद आये, दर्दे-जिगर होने लगा,
चश्म दे गए धोखा, दर्दे-असर होने लगा|

मेरा दिल,कशिश से किस कदर रोने लगा,
लाख चाह रोने पे काबू,उल्टा असर होने लगा|

जो ख़बर उनकी आई दिल में कुछ होने लगा,
ख़ुद से मैं,मुझसे ख़ुद,दिल बेख़बर होने लगा|

जो हमने सुनाई अपनी दास्ताँ- ए-हाले दिल,
हर तरफ़ चश्म तर, माहौल नम होने लागा|

जाने किसने छेडी दास्ताँ- ए-चश्म नम मेरी,
महफ़िल में हर ज़ुबां कियों ज़िक्रे दर्द होने लागा|

उनके कूचे में जाना ही पड़ेगा , अब हो जो हो,
जाने कियों 'शकील' फ़िर दिल बेताब होने लगा|



1 comment:

  1. बढिया ग़ज़ल है. दो एक बातें. मतले में होने लगा की जगह जुछ और ताइप हो गया है, ठीक कर दें. एक जगह आपने लिखा है दास्तां-ए-हाले दिल. कृपया इस पर पुनर्विचार करें.

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