Saturday, August 15, 2009

दोस्त

यह जंग तो मैं कब का जीत गया होता,
यारों की दगाबाज़ियो से जो बच गया होता|

दुशवारिये वक़्त पल भर में गुज़र गया होता,
दोस्तों के भरोसे से मैं जो बच गया होता|

नक्बते आज़माइशो में कामयाब हो गया होता,
रफ़ीक़ो का निक़ाब जो अयाँ हो गया होता|

अपनों की शिकायतों से तो मैं बच गया होता,
दोस्तों के सितम से जो सताया न गया होता|

दुशमनों की दुशमनी का क्या गिला करे 'शकील',
यारों की मेहरबानियों से जो रुलाया न गया होता|

( अयाँ-स्पष्ट, निक़ाब-पर्दा, नक्बत-निर्धनता, रफ़ीक़-मित्र )

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