Tuesday, August 11, 2009

गुल

क़ुर्बते गुल किस कदर जाँबख्श है,
ये खारों से पूछ|

चाँद की तन्वीर में क्या लुत्फ़ है,
ये तारों से पूछ|

नशाये सहबा में क्या लज्ज़त है,
ये मैख्वारो से पूछ|

चार:साजी में क्या मज़ा है,
ये बीमारों से पूछ|

शबाबे हुस्न की क्या मस्ती है,
ये दीवानों से पूछ|

सुनहरी शिआओ की क्या मसर्रत है,
ये परवानो से पूछ|

गर तू न पूछ सके किसीसे कुछ,
तो आ 'शकील' के गमे दिल से पूछ|

(कुर्बत-सोहबत, जाँबख्श-प्राण देने वाला, खर-कांटे,
तन्वीर-रौशनी, सहबा-लाल शराब, चार:साजी-इलाज,
सुनहरी शिआओ-शमा की आग)



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