अब नाम के रह गए जहाँ में दोस्त|
कहाँ दोस्त एक रंग, जब दोस्ती हो दो रंग,
सुबह है वही दुश्मन, जो शाम को हो दोस्त|
मेरे लिए तो बेहतर है वो दुश्मन अपना,
जो मानता है, इस दुश्मन को भी दोस्त|
जो मानता है, इस दुश्मन को भी दोस्त|
चाहता है दुश्मन भी वफाये दुशमनी दुश्मन से,
तू पहले कर ख़त्म, खुदपरस्ती को ऐ दोस्त|
तू पहले कर ख़त्म, खुदपरस्ती को ऐ दोस्त|
दोस्ती तुझसे जो ऐ दोस्त!,हुई जंजाल अपनी,
न किसी के दुश्मन, न रहे किसी के दोस्त|
होते है दोस्त पहली मुलाक़ात में सब 'शकील',
शख्स वो है बेहतर जो आख़िर तक रहे दोस्त|
शख्स वो है बेहतर जो आख़िर तक रहे दोस्त|
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