Tuesday, August 18, 2009

बेहतर दोस्त

अब कहाँ है दुनियाँ में सच्चे दोस्त,
अब नाम के रह गए जहाँ में दोस्त|

कहाँ दोस्त एक रंग, जब दोस्ती हो दो रंग,
सुबह है वही दुश्मन, जो शाम को हो दोस्त|

मेरे लिए तो बेहतर है वो दुश्मन अपना,
जो मानता है, इस दुश्मन को भी दोस्त|

चाहता है दुश्मन भी वफाये दुशमनी दुश्मन से,
तू पहले कर ख़त्म, खुदपरस्ती को दोस्त|

दोस्ती तुझसे जो ऐ दोस्त!,हुई जंजाल अपनी,
किसी के दुश्मन, रहे किसी के दोस्त|

होते है दोस्त पहली मुलाक़ात में सब 'शकील',
शख्स वो है बेहतर जो आख़िर तक रहे दोस्त|

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