अपनी रहमतों से ख़ूब देना|
गर देना आजिज़ी देना,
मगर तक़ब्बुर की अदा न देना|
गलतियाँ तो गलतियाँ है,
मुझे यह एहसास देना|
मांग सकूँ ग़लतियों की माफ़ी,
खुदा मुझे वो ज़ंबा देना|
मेरे मौला मेरे वक़ार को,
वो किरदार असरदार देना|
बदअख्लाकी से मैं बचूं ,
अख्लाकी का वो मेयार देना|
एशो-इशरत तो तेरी नेअमत है,
बन्दों को तू ख़ूब देना|
मगर उससे पहले मेरे खुदा,
इंसानियत का सबक़ देना|
मुझे नज़र-ऐ-नूर देना|
मगर पहले मेरी आँखों को,
हया का 'शकील' शुऊर देना|
(नेअमत-उपहार,आजिज़ी-नम्रता,मेयार-स्तर,शुऊर-विवेक)
बहुत नेक खयाल हैं और इतनी ही खूबसूरती से अभिव्यक्त भी हुए हैं. बधाई.
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