Thursday, August 13, 2009

दुआ

मेरे खुदा है इल्तज़ा,
अपनी रहमतों से ख़ूब देना|

गर देना आजिज़ी देना,
मगर तक़ब्बुर की अदा देना|

गलतियाँ तो गलतियाँ है,
मुझे यह एहसास देना|

मांग सकूँ ग़लतियों की माफ़ी,
खुदा मुझे वो ज़ंबा देना|

मेरे मौला मेरे वक़ार को,
वो किरदार असरदार देना|

बदअख्लाकी से मैं बचूं ,
अख्लाकी
का वो मेयार देना|

एशो-इशरत तो तेरी नेअमत है,
बन्दों को तू ख़ूब देना|

मगर उससे पहले मेरे खुदा,
इंसानियत का सबक़ देना|

मंज़र--नज़र के लिए,
मुझे नज़र--नूर देना|

मगर पहले मेरी आँखों को,
हया का 'शकील' शुऊर देना|
(नेअमत-उपहार,आजिज़ी-नम्रता,मेयार-स्तर,शुऊर-विवेक)

1 comment:

  1. बहुत नेक खयाल हैं और इतनी ही खूबसूरती से अभिव्यक्त भी हुए हैं. बधाई.

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