बहारों खिजां की नशेबोफराजियाँ माज़ अल्लाह,
कभी चमन से तो कभी खार जार से गुज़रे|
क्या-क्या रंग देखे मैखान-ऐ- जहाँ में हमने,
कभी सोचो फ़िक्र से तो कभी कैफ़ो खुमार से गुज़रे|
उम्र भर पाया न सुराग़ तेरे ऐ ज़िन्दगी हमने,
तेरी तलाश में किस-किस दयार से गुज़रे|
कभी तशनगी कभी मैकशी अजब है ये ज़िन्दगी,
कभी हवाये नासाज़गार से तो कभी फिज़ाए खुशगवार से गुज़रे|
कितने दिलचस्प मर्हला है सफ़र का ये ज़िन्दगी,
कभी मंजिले हयात से तो कभी सरेदार से गुज़रे|
कभी तन्हाईओं का तो कभी सोह्बतो का रंग है ज़िन्दगी,
कभी विसाल से तो कभी इंतजार-ऐ-यार से गुज़रे|
कभी सितम की तो कभी मेहरबानियों की पैकर है ज़िन्दगी,
कभी नाखुशी से तो कभी 'शकील' खुशगवारी से गुज़रे|
Friday, July 31, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment