वक़्त जिससे खफा हो जाए,
हर खुशी उससे जुदा हो जाए|
दिन का चैन न रात का करार मिले,
हर साँस उस की सज़ा हो जाए|
इंक़लाब को भी हो हैरत उस पर,
पल भर मे उस का खाना ख़राब हो जाए|
बर्क़ उड़े और इस तरह गिरे,
की दम भर में आशियाँ धुआं हो जाए|
जीये और जिंदा ज़रूर कहलाये,
मगर ज़िन्दगी उस की कज़ा हो जाए|
चांदनी रात हो या उजाला दिन का,
हर तरफ़ उसके लिए अँधेरा हो जाए|
क़यामत है गर्दिशे दौरा का सितम,
जिस पर भी हो तबाह हो जाए|
हम अपनी मुसीबतों का क्या गिला करें,
डरते है कहीं वक्त और ना खफा हो जाए|
खुदा महफूज़ रखे गर्दिशे दौरां से,
जिस पर भी नजर पड़े खाना ख़राब हो जाए|
वक़्त की फिर मुझे पर इनायत हो जाए,
अब मेरी कबूल मेरी ये दुआ हो जाए|
बहुत उठा चुका मैं 'शकील'अपनी खतओ की सज़ा,
अल्लाह माफ़ मेरी अब सज़ा हो जाए|
Wednesday, July 15, 2009
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Wah shakeel saheb
ReplyDeleteaapki pahli gazal ne hi aapka fan bana diya
Hardik swagat hai aapka blog jagat mein
likhte rahe
स्वागत!
ReplyDeleteबहुत खूब! दम है।
http://swarsrijan.blogspot.com/
http://samaysrijan.blogspot.com/
हिन्दी ब्लाग्स की दुनिया में आपका स्वागत है. पड कर अच्छा लगा, इस प्रयास के लिये आप को बधाई, बस इसी तरह लिखते रहिये, और हम पड्ते रहेंगे.
ReplyDeleteचारुल शुक्ल
मेरे लेखो के लिये आइये
http://dilli6in.blogspot.com
हुम दुआ करेगें कि खुदा आपकी सजा माफ़ करें।बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteबेहतर रचना...
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