Wednesday, July 15, 2009

वक़्त

वक़्त जिससे खफा हो जाए,
हर खुशी उससे जुदा हो जाए|

दिन का चैन न रात का करार मिले,
हर साँस उस की सज़ा हो जाए|

इंक़लाब को भी हो हैरत उस पर,
पल भर मे उस का खाना ख़राब हो जाए|

बर्क़ उड़े और इस तरह गिरे,
की दम भर में आशियाँ धुआं हो जाए|

जीये और जिंदा ज़रूर कहलाये,
मगर ज़िन्दगी उस की कज़ा हो जाए|

चांदनी रात हो या उजाला दिन का,
हर तरफ़ उसके लिए अँधेरा हो जाए|

क़यामत है गर्दिशे दौरा का सितम,
जिस पर भी हो तबाह हो जाए|

हम अपनी मुसीबतों का क्या गिला करें,
डरते है कहीं वक्त और ना खफा हो जाए|

खुदा महफूज़ रखे गर्दिशे दौरां से,
जिस पर भी नजर पड़े खाना ख़राब हो जाए|

वक़्त की फिर मुझे पर इनायत हो जाए,
अब मेरी कबूल मेरी ये दुआ हो जाए|

बहुत उठा चुका मैं 'शकील'अपनी खतओ की सज़ा,
अल्लाह माफ़ मेरी अब सज़ा हो जाए|

5 comments:

  1. Wah shakeel saheb
    aapki pahli gazal ne hi aapka fan bana diya

    Hardik swagat hai aapka blog jagat mein
    likhte rahe

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  2. स्वागत!
    बहुत खूब! दम है।
    http://swarsrijan.blogspot.com/
    http://samaysrijan.blogspot.com/

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  3. हिन्दी ब्लाग्स की दुनिया में आपका स्वागत है. पड कर अच्छा लगा, इस प्रयास के लिये आप को बधाई, बस इसी तरह लिखते रहिये, और हम पड्ते रहेंगे.

    चारुल शुक्ल
    मेरे लेखो के लिये आइये
    http://dilli6in.blogspot.com

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  4. हुम दुआ करेगें कि खुदा आपकी सजा माफ़ करें।बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…मेरे ब्लोग पर आपका स्वागत है।

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  5. बेहतर रचना...

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