Sunday, July 19, 2009

ग़म

मिज़ाजे ग़म की जिन्हें ख़बर नही होती,
ख़ुशी में भी उन्हें ख़ुशी मय्यसर नही होती|

जो जलते है चिराग़ बन के तेरी महफिल में,
उनके घर में कभी रौशनी नही होती|

ग़म-ऐ- इश्क में जब तक न हुस्न शामिल हो,
ग़म-ऐ- मोहब्बत में कभी दिलकशी नही होती|

बे-वफाई के इस जहाँ में वफ़ा का नाम न ले,
वफ़ा के नाम से अब हमें ख़ुशी नही होती|

मेहरबनिया तो बड़ी चीज़ है इंसानियत के पहलू में,
दुश्मनी में भी तो अब शाइस्दगी नही होती|

शरीक़-ऐ- गम बनाने चले हो किसे 'शकील'
शरीक़-ऐ- ग़म ये दुनिया कभी नही होती|

1 comment:

  1. It's not merely a blog. rather it is a beautiful poetry book. visiting ur blog gave me the experiance of attending a live MUSHAERA. sir, the gazal titled as 'gham'is liked by me the most. specially the las two sher including matla.
    thank u very much sir.

    Nemi Chand Pareek DTO ajmer.

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