Saturday, July 11, 2009

मौत

क्या सफेद, क्या सियाह किया ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बेमुरव्वत दगा दे गई मुझे मौत के खातिर|

क्या-क्या गुमान करते थे जिस्मे कुव्वत पर ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बेवफा तन्हा बेबस छोड़ दिया मुझे मौत के खातिर|

क्या-क्या सितम सहे हमने ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! तूने ये क्या सितम किया मौत के खातिर|

कभी रौंदा करते थे कदमो से ज़मीं को ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बे-रहम आज तूने ज़मीं दोज़ किया मुझे मौत के खातिर|

क्या-क्या नही किया हमने ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बे-दादगर तूने ये क्या सिला दिया मुझे मौत की खातिर|

कासिद तो बहुत आते रहे मौत के 'शकील' तेरे खातिर,
हम ही बे-ख़बर रहे मौत से ज़िन्दगी तेरे खातिर|

No comments:

Post a Comment