न नमाज़ न तौबा काम आती है|
तेरी रहबरी भी रहज़नी से कम नही,
मेरी आवारगी भी रहनुमाई के काम आती है|
उजाला ही नही सब कुछ राहे तमन्ना में,
तीरगी हो तो अक्सर बसीरत काम आती है|
समझ लेते है हम मुश्किलों को मुसीबत,
मुश्किलें ही अक्सर मुसीबतों के काम आती है|
उनकी वादा खिलाफी पे है क्यो हंगामा बरपा,
खुदगर्ज़ी भी तो आज़माने के काम आती है|
वफ़ा की तो सब करते है उम्मीद 'शकील',
बे-वफाई भी तो दुश्मनी निभाने के काम आती है|
( हयात-ज़िंदगी,रहबरी-पथ-प्रदर्शन,रहज़नी-लूटेरापन,
तीरगी-अंधकार,बसीरत-दिल की नज़र/प्रतिभा,खुदगर्ज़ी-स्वार्थपरता )
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