तन्हाइयों में ख़याल बन के रहते हो|
दिलों की कशिश कहाँ है नुमायाँ,
जिगर में तुम दर्द बन के रहते हो|
चेनो-करार से तौबा मेरी तौबा ,
सकून में भी बेचेन बन के रहते हो|
नजरे मिले या झुके ज़मी पर,
तुम आँखों में नूर बन के रहते हो|
शब की तारिकियों में है सन्नाटा ,
नींद में तुम ख्वाब बन के रहते हो|
गमे जुदाई हो या मिलन की ख़ुशी,
तुम दिल में लहू बन के रहते हो|
किस को सुनाये दास्ताँ-ए-दिल,
तुम कहीं रहो मगर नज़र में रहते हो|
यूँ तो तग़य्युराते ख़याल है बहुत,
मगर तुम तसव्वुर बन के रहते हो|
ये ज़रूरी नहीं'शकील' तुम कुछ कहो,
खामोश मगर तुम जुबां पर रहते हो|
( तग़य्युराते-बदलाव )
बहुत ही अर्थपूर्ण ग़ज़ल है. बधाई!
ReplyDeleteyoon hi likhte rahen or aise hi badhe aapki saakh
ReplyDeleteaap jeeyen hazaron sal or ek sal ke din ho ek laakh
janmdin ki badhai
yug- yug se tuchchh
pradeep