मुहब्बत की कहाँ कोई ज़बाँ होती है,
दिल की बात नज़रों से बयाँ होती है|
दिले बेताबियों का आलम मत पूछो,
नज़रों में फिर भी हया ए वफ़ा होती है|
ज़माने की बंदिशे हो चाहे लाख,
मुहब्बत तो हर रोज़ जवाँ होती है|
क्यों पूछते हो हाले दिल उनका,
हर हाल पर उनके निगाहाँ होती है|
मिट जाये चाहे जमाने में खुद की हस्ती,
मुहब्बत फिर भी बेगुनाहाँ होती है|
मुहब्बते मर्ज़ तो मर्ज़ है दिल का'शकील',
कहाँ इलाज कहाँ कोई शिफ़ा होती है|
Tuesday, April 13, 2010
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