कहाँ -कहाँ सिज़दा करूँ माँगने के लिए ,
उठते नहीं हाथ मेरे अब दुआ के लिए ।
ये भी क्या खुदगर्ज़ी है तेरी गर्दिशे हयात ,
मेरा ही घर बचा था तेरे इम्तिहं के लिए ।
उम्रे हयात तो है अपनी गमे दौरा के लिए ,
चन्द लम्हात माँगे थे सिर्फ ख़ुशी के लिए ।
इन्तिहे सितम है ये तेरा जहाँ को देने वाले ,
हमारे नसीब में ग़म, ख़ुशी सज़ा के लिए ।
अब नहीं फुर्सत शकील हमें दुआ के लिए ,
मेरी खुददारी अब है तेरे शुक्रिया के लिए ।
उठते नहीं हाथ मेरे अब दुआ के लिए ।
ये भी क्या खुदगर्ज़ी है तेरी गर्दिशे हयात ,
मेरा ही घर बचा था तेरे इम्तिहं के लिए ।
उम्रे हयात तो है अपनी गमे दौरा के लिए ,
चन्द लम्हात माँगे थे सिर्फ ख़ुशी के लिए ।
इन्तिहे सितम है ये तेरा जहाँ को देने वाले ,
हमारे नसीब में ग़म, ख़ुशी सज़ा के लिए ।
अब नहीं फुर्सत शकील हमें दुआ के लिए ,
मेरी खुददारी अब है तेरे शुक्रिया के लिए ।