Sunday, March 3, 2013

नफ़्स

कर ली तामीरे  देरो -हरम की तो क्या ?
आदमी ख़ुद तो नफ़्स का बंदा ही रहा।

मै तो चलता रहा बच बच कर फिर भी ,
खारे सेहरा दामन से उलझता ही रहा ।

खोफ़े ख़ुदा की तो बात करता है बंदा,
गुनाहओं से फिर भी वबस्ता ही रहा ।

सुबह -शाम मंजिल पर रहा मै कायम,
सहर-सादिक सफ़र में भटकता ही रहा ।

तह्ज़ीबो का दावा किया बहुत शकील ,
शैतानी फित्रतों में मै मुब्तिला  ही रहा ।






















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