कर ली तामीरे देरो -हरम की तो क्या ?
आदमी ख़ुद तो नफ़्स का बंदा ही रहा।
मै तो चलता रहा बच बच कर फिर भी ,
खारे सेहरा दामन से उलझता ही रहा ।
खोफ़े ख़ुदा की तो बात करता है बंदा,
गुनाहओं से फिर भी वबस्ता ही रहा ।
सुबह -शाम मंजिल पर रहा मै कायम,
सहर-सादिक सफ़र में भटकता ही रहा ।
तह्ज़ीबो का दावा किया बहुत शकील ,
शैतानी फित्रतों में मै मुब्तिला ही रहा ।
आदमी ख़ुद तो नफ़्स का बंदा ही रहा।
मै तो चलता रहा बच बच कर फिर भी ,
खारे सेहरा दामन से उलझता ही रहा ।
खोफ़े ख़ुदा की तो बात करता है बंदा,
गुनाहओं से फिर भी वबस्ता ही रहा ।
सुबह -शाम मंजिल पर रहा मै कायम,
सहर-सादिक सफ़र में भटकता ही रहा ।
तह्ज़ीबो का दावा किया बहुत शकील ,
शैतानी फित्रतों में मै मुब्तिला ही रहा ।
No comments:
Post a Comment