Wednesday, May 5, 2010

आवारगी

मै से सेर होती है हर रोज़ तशनगी मेरी,
खूब मज़े से गुज़र रही है अब ज़िंदगी मेरी|


पूजता हूँ बुतखाने में जाकर देवताओं को,
ख़ुदा वाहिद पर मुनहसिर कहाँ बंदगी मेरी|


जिससे चाहता हूँ तबियत बहलाता हूँ अपनी,
जिससे चाहता हूँ बुझा लेता हूँ दिल लगी |


मन्ज़िलों से भी आगे मन्ज़िले ज़िंदगी मेरी,
मन्ज़िल की जुस्तजू है अब आवारगी मेरी|


मै भी पीता हूँ और साकी भी है साथ मेरे ,
बड़ा ही लुत्फ़ देती है ज़िंदगी-ए-मैकशी मेरी|


पी के बदा अक्सर नशे में डूबा रहता हूँ,
कितनी महफूज़ है गर्दिशे दौरा से बेखुदी मेरी|


हशोखिरद को भी अब है ज़रूरत मेरी,
हसद है ज़माने को अब जिन्दज़ी मेरी|


मेरी परवाज़ में बलान्दियाँ है फ़लक की'शकील'
आसमाँ पर मुतमव्विज़ है अब दीवानगी मेरी|

(
मै-शराब, तशनगी-शराब की प्यास, सेर-संतुष्टि, वाहिद-केवल एक, बदा- शराब,हशोखिरद- अक्ल और तमीज़, मुतमव्विज़- मौज मारता हुआ, हसद-ईर्ष्या

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