Thursday, May 6, 2010

बेगाना

इश्क़ में लोग हमें दीवाना कहने लगे ,
अपने ही खुद हमें बेगाना कहने लगे|

आशिक़ों को कब बख्शा है ज़माने ने,
हर अदा को ही आशिक़ाना कहने लगे|

जो गुज़रे हम तेरे दर से जब एक दम,
तेरे दर को हमारा आस्ताना कहने लगे|

इश्क़ तो फ़ित्रत है इंसा के मिज़ाज की,
क्यों सब हमें उनका दीवाना कहने लगे|

किसका ज़ोर चला है भला इश्क़ पर,
मुहब्बत को क्यों ग़म उठाना कहने लगे|

हुस्न को है कहाँ तबो-ताब इश्क़ के बिना,
क्यों हमारे कलाम को सूफ़ियाना कहने लगे|

फ़ना है हर ज़र्रा इस कायनाते जहाँ का,
हमारे इश्क़ को क्यों अफसाना कहने लगे|

ख़ुदा महफूज़ रखे इश्क़ को हर दिल में,
हमारे दिल को क्यों आशियाना कहने लगे|

आखों में कशिश,सीने में तपिश है फित्रते दिल,
फिर क्यों'शकील' हमें सब दीवाना कहने लगे|

1 comment:

  1. क्या बात है शकील जी...

    खुदा महफ़ूज़ रखे इश्क को हर दिल में
    हमारे दिल को क्यों आशियाना कहनें लगे...

    वाकई बेहतरीन..

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