बहारों खिजां की नशेबोफराजियाँ माज़ अल्लाह,
कभी चमन से तो कभी खार जार से गुज़रे|
क्या-क्या रंग देखे मैखान-ऐ- जहाँ में हमने,
कभी सोचो फ़िक्र से तो कभी कैफ़ो खुमार से गुज़रे|
उम्र भर पाया न सुराग़ तेरे ऐ ज़िन्दगी हमने,
तेरी तलाश में किस-किस दयार से गुज़रे|
कभी तशनगी कभी मैकशी अजब है ये ज़िन्दगी,
कभी हवाये नासाज़गार से तो कभी फिज़ाए खुशगवार से गुज़रे|
कितने दिलचस्प मर्हला है सफ़र का ये ज़िन्दगी,
कभी मंजिले हयात से तो कभी सरेदार से गुज़रे|
कभी तन्हाईओं का तो कभी सोह्बतो का रंग है ज़िन्दगी,
कभी विसाल से तो कभी इंतजार-ऐ-यार से गुज़रे|
कभी सितम की तो कभी मेहरबानियों की पैकर है ज़िन्दगी,
कभी नाखुशी से तो कभी 'शकील' खुशगवारी से गुज़रे|
Friday, July 31, 2009
सरसब्द
पड़ी न थी अभी बुनियाद आशियाने की,
सिमट के आगई सब बिजलियाँ ज़माने की|
जवानी में था जब जोश-ऐ-मैयकशी अपना,
बड़ी हसीन थी दुनिया शराबखाने की|
परवाज़ ने ली थी अंगडाई अभी शबाब की,
नज़र लग गई हुसन पे सय्यादे कैदखाने की|
किसी से कीजिये क्या रस्मे दोस्ती का गिला,
बदल रही हैं मुकर्रम हवाये ज़माने की|
हसरत थी चुनने की सरसब्द गुलिस्ताने 'शकील',
दिल की दिल में रह गई हसरत दीवाने की|
( सरसब्द-फूलों की टोकरी में सबसे खुबसूरत और उत्तम फूल )
सिमट के आगई सब बिजलियाँ ज़माने की|
जवानी में था जब जोश-ऐ-मैयकशी अपना,
बड़ी हसीन थी दुनिया शराबखाने की|
परवाज़ ने ली थी अंगडाई अभी शबाब की,
नज़र लग गई हुसन पे सय्यादे कैदखाने की|
किसी से कीजिये क्या रस्मे दोस्ती का गिला,
बदल रही हैं मुकर्रम हवाये ज़माने की|
हसरत थी चुनने की सरसब्द गुलिस्ताने 'शकील',
दिल की दिल में रह गई हसरत दीवाने की|
( सरसब्द-फूलों की टोकरी में सबसे खुबसूरत और उत्तम फूल )
Monday, July 27, 2009
हकीक़त
ज़िन्दगी की हकीक़त जब रौशन होती है,
अंधेरों में ज़िन्दगी गुज़र गई होती है|
बेदारी तो लाज़िम है नींद के बाद,
ज़िन्दगी ख्वाबों में गुज़र गई होती है|
शब की तारिकियों में न उलझ सितारों में,
सेहरे इंतजार में रात गुज़र गई होती|
उम्रे शबाब में तो कहाँ फुर्सत होती है,
होश आने पर उम्र गुज़र गई होती है|
ख़बर जब होती है तेरे तिलिस्म की 'शकील',
हयाते आरज़ू ख़ुद जुस्तजू बन गई होती है|
अंधेरों में ज़िन्दगी गुज़र गई होती है|
बेदारी तो लाज़िम है नींद के बाद,
ज़िन्दगी ख्वाबों में गुज़र गई होती है|
शब की तारिकियों में न उलझ सितारों में,
सेहरे इंतजार में रात गुज़र गई होती|
उम्रे शबाब में तो कहाँ फुर्सत होती है,
होश आने पर उम्र गुज़र गई होती है|
ख़बर जब होती है तेरे तिलिस्म की 'शकील',
हयाते आरज़ू ख़ुद जुस्तजू बन गई होती है|
Sunday, July 19, 2009
ग़म
मिज़ाजे ग़म की जिन्हें ख़बर नही होती,
ख़ुशी में भी उन्हें ख़ुशी मय्यसर नही होती|
जो जलते है चिराग़ बन के तेरी महफिल में,
उनके घर में कभी रौशनी नही होती|
ग़म-ऐ- इश्क में जब तक न हुस्न शामिल हो,
ग़म-ऐ- मोहब्बत में कभी दिलकशी नही होती|
बे-वफाई के इस जहाँ में वफ़ा का नाम न ले,
वफ़ा के नाम से अब हमें ख़ुशी नही होती|
मेहरबनिया तो बड़ी चीज़ है इंसानियत के पहलू में,
दुश्मनी में भी तो अब शाइस्दगी नही होती|
शरीक़-ऐ- गम बनाने चले हो किसे 'शकील'
शरीक़-ऐ- ग़म ये दुनिया कभी नही होती|
ख़ुशी में भी उन्हें ख़ुशी मय्यसर नही होती|
जो जलते है चिराग़ बन के तेरी महफिल में,
उनके घर में कभी रौशनी नही होती|
ग़म-ऐ- इश्क में जब तक न हुस्न शामिल हो,
ग़म-ऐ- मोहब्बत में कभी दिलकशी नही होती|
बे-वफाई के इस जहाँ में वफ़ा का नाम न ले,
वफ़ा के नाम से अब हमें ख़ुशी नही होती|
मेहरबनिया तो बड़ी चीज़ है इंसानियत के पहलू में,
दुश्मनी में भी तो अब शाइस्दगी नही होती|
शरीक़-ऐ- गम बनाने चले हो किसे 'शकील'
शरीक़-ऐ- ग़म ये दुनिया कभी नही होती|
Saturday, July 18, 2009
सलीका
सलीका कहाँ था अहले- दुनिया को जीने का,
जीने वालों को करीने की हमने अदा दी है|
ख़ुद रहे तशन लब मगर उठे घटा बन कर,
इस तरह प्यास सहरा की हमने बुझा दी है|
कभी शराब तो कभी मय बने तशनगी तेरे खातिर,
रिन्दों को मय तो सहरा को हमने घटा दी है|
कभी तूफां को कभी मझधार को हौसलों को अदा दी है,
इस तरह साहिल को हमने आबरू की सदा दी है|
बने शम्शो कार शमाओ 'शकील',
नूर बन कर अंधेरों को हमने जिला दी है|
जीने वालों को करीने की हमने अदा दी है|
ख़ुद रहे तशन लब मगर उठे घटा बन कर,
इस तरह प्यास सहरा की हमने बुझा दी है|
कभी शराब तो कभी मय बने तशनगी तेरे खातिर,
रिन्दों को मय तो सहरा को हमने घटा दी है|
कभी तूफां को कभी मझधार को हौसलों को अदा दी है,
इस तरह साहिल को हमने आबरू की सदा दी है|
बने शम्शो कार शमाओ 'शकील',
नूर बन कर अंधेरों को हमने जिला दी है|
Wednesday, July 15, 2009
वक़्त
वक़्त जिससे खफा हो जाए,
हर खुशी उससे जुदा हो जाए|
दिन का चैन न रात का करार मिले,
हर साँस उस की सज़ा हो जाए|
इंक़लाब को भी हो हैरत उस पर,
पल भर मे उस का खाना ख़राब हो जाए|
बर्क़ उड़े और इस तरह गिरे,
की दम भर में आशियाँ धुआं हो जाए|
जीये और जिंदा ज़रूर कहलाये,
मगर ज़िन्दगी उस की कज़ा हो जाए|
चांदनी रात हो या उजाला दिन का,
हर तरफ़ उसके लिए अँधेरा हो जाए|
क़यामत है गर्दिशे दौरा का सितम,
जिस पर भी हो तबाह हो जाए|
हम अपनी मुसीबतों का क्या गिला करें,
डरते है कहीं वक्त और ना खफा हो जाए|
खुदा महफूज़ रखे गर्दिशे दौरां से,
जिस पर भी नजर पड़े खाना ख़राब हो जाए|
वक़्त की फिर मुझे पर इनायत हो जाए,
अब मेरी कबूल मेरी ये दुआ हो जाए|
बहुत उठा चुका मैं 'शकील'अपनी खतओ की सज़ा,
अल्लाह माफ़ मेरी अब सज़ा हो जाए|
हर खुशी उससे जुदा हो जाए|
दिन का चैन न रात का करार मिले,
हर साँस उस की सज़ा हो जाए|
इंक़लाब को भी हो हैरत उस पर,
पल भर मे उस का खाना ख़राब हो जाए|
बर्क़ उड़े और इस तरह गिरे,
की दम भर में आशियाँ धुआं हो जाए|
जीये और जिंदा ज़रूर कहलाये,
मगर ज़िन्दगी उस की कज़ा हो जाए|
चांदनी रात हो या उजाला दिन का,
हर तरफ़ उसके लिए अँधेरा हो जाए|
क़यामत है गर्दिशे दौरा का सितम,
जिस पर भी हो तबाह हो जाए|
हम अपनी मुसीबतों का क्या गिला करें,
डरते है कहीं वक्त और ना खफा हो जाए|
खुदा महफूज़ रखे गर्दिशे दौरां से,
जिस पर भी नजर पड़े खाना ख़राब हो जाए|
वक़्त की फिर मुझे पर इनायत हो जाए,
अब मेरी कबूल मेरी ये दुआ हो जाए|
बहुत उठा चुका मैं 'शकील'अपनी खतओ की सज़ा,
अल्लाह माफ़ मेरी अब सज़ा हो जाए|
Tuesday, July 14, 2009
खामोशी
खामोशी की भी कोई ज़ंबा होती है,
खामोश मगर असरदार होती है|
कहेने को बहुत है मगर कंहा बात होती है,
बिना कहे जिगर के आर-पार होती है|
मुलाक़ात होती है, कंहा आवाज़ होती है,
निगाहों-निगाहों मैं बात होती है |
ना वो बात करते है ना हमसे बात होती है,
बिना ज़ंबा भी उन से दुआ-सलाम होती है|
खामोशी में भी उनकी कोई नई बात होती है,
कहे ना सके जो 'शकील' वो बात होती है|
खामोश मगर असरदार होती है|
कहेने को बहुत है मगर कंहा बात होती है,
बिना कहे जिगर के आर-पार होती है|
मुलाक़ात होती है, कंहा आवाज़ होती है,
निगाहों-निगाहों मैं बात होती है |
ना वो बात करते है ना हमसे बात होती है,
बिना ज़ंबा भी उन से दुआ-सलाम होती है|
खामोशी में भी उनकी कोई नई बात होती है,
कहे ना सके जो 'शकील' वो बात होती है|
खुशी
वक्त से खुशी उधार लेते हैं,
उदास ज़िन्दगी को बहार देते हैं|
कर के खुशामद गर्दिशे दौरां की,
अपने बिगड़े हालात संवार लेते हैं|
रचा के फसले गुलों की रंगीनियां,
धुंधले माहौल को निखार लेते हैं|
ये न कोई सौदा न तिजारत है कोई,
प्यार दे कर हम उनका प्यार लेते हैं|
जहाँ भी मिल जाए घनी छांव "शकील"
घड़ी-दो-घड़ी वक्त अपना गुज़ार लेते हैं|
उदास ज़िन्दगी को बहार देते हैं|
कर के खुशामद गर्दिशे दौरां की,
अपने बिगड़े हालात संवार लेते हैं|
रचा के फसले गुलों की रंगीनियां,
धुंधले माहौल को निखार लेते हैं|
ये न कोई सौदा न तिजारत है कोई,
प्यार दे कर हम उनका प्यार लेते हैं|
जहाँ भी मिल जाए घनी छांव "शकील"
घड़ी-दो-घड़ी वक्त अपना गुज़ार लेते हैं|
Monday, July 13, 2009
मन्ज़िल
राज़ ऐ-ज़िन्दगी सुना रहा हूँ,
खली हाथ मैं जा रहा हूँ|
लोग आ रहे है दर को मेरे,
बेबस कुचे से मैं जा रहा हूँ|
कारवा हैं शामिल मय्यत में मेरी,
तन्हा,फ़ना होने मैं जा रहा हूँ|
कोई रो रहा रहा, कोई हँस रहा है,
चुप -चाप कांधो पर मैं जा रहा हूँ|
ऐ कन्धा देने वालो देखों ज़रा,
जाते-जाते 'शकील' तुम को मंजिल मैं दिखा रहा हूँ|
खली हाथ मैं जा रहा हूँ|
लोग आ रहे है दर को मेरे,
बेबस कुचे से मैं जा रहा हूँ|
कारवा हैं शामिल मय्यत में मेरी,
तन्हा,फ़ना होने मैं जा रहा हूँ|
कोई रो रहा रहा, कोई हँस रहा है,
चुप -चाप कांधो पर मैं जा रहा हूँ|
ऐ कन्धा देने वालो देखों ज़रा,
Saturday, July 11, 2009
मौत
क्या सफेद, क्या सियाह किया ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बेमुरव्वत दगा दे गई मुझे मौत के खातिर|
क्या-क्या गुमान करते थे जिस्मे कुव्वत पर ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बेवफा तन्हा बेबस छोड़ दिया मुझे मौत के खातिर|
क्या-क्या सितम सहे हमने ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! तूने ये क्या सितम किया मौत के खातिर|
कभी रौंदा करते थे कदमो से ज़मीं को ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बे-रहम आज तूने ज़मीं दोज़ किया मुझे मौत के खातिर|
क्या-क्या नही किया हमने ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बे-दादगर तूने ये क्या सिला दिया मुझे मौत की खातिर|
कासिद तो बहुत आते रहे मौत के 'शकील' तेरे खातिर,
हम ही बे-ख़बर रहे मौत से ज़िन्दगी तेरे खातिर|
अरे! बेमुरव्वत दगा दे गई मुझे मौत के खातिर|
क्या-क्या गुमान करते थे जिस्मे कुव्वत पर ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बेवफा तन्हा बेबस छोड़ दिया मुझे मौत के खातिर|
क्या-क्या सितम सहे हमने ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! तूने ये क्या सितम किया मौत के खातिर|
कभी रौंदा करते थे कदमो से ज़मीं को ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बे-रहम आज तूने ज़मीं दोज़ किया मुझे मौत के खातिर|
क्या-क्या नही किया हमने ज़िन्दगी तेरे खातिर,
अरे! बे-दादगर तूने ये क्या सिला दिया मुझे मौत की खातिर|
कासिद तो बहुत आते रहे मौत के 'शकील' तेरे खातिर,
हम ही बे-ख़बर रहे मौत से ज़िन्दगी तेरे खातिर|
रास्ते
सफरे ज़िन्दगी में,
देखते-देखते कट गये रास्ते|
सफर दर-सफर मिल गये रास्ते,
कभी ठहरे तो कभी मिल गये रास्ते।
मंजिलो की जुस्तुजू में,
नये-नये बन गये रास्ते।
काम आयी जुनून की सरगर्मी,
बर्फ बन के पिघल गये रास्ते|
चलते-चलते सफर में,
कौसों निकल गये रास्ते|
कौन रोक सका है भला,
इन रास्तों के रास्ते|
हर मोड़ पर घर-घर में,
बन गए हजारो रस्ते|
जो रुक गये हम एक दम 'शकील
हम से आगे निकल गये रास्ते.
देखते-देखते कट गये रास्ते|
सफर दर-सफर मिल गये रास्ते,
कभी ठहरे तो कभी मिल गये रास्ते।
मंजिलो की जुस्तुजू में,
नये-नये बन गये रास्ते।
काम आयी जुनून की सरगर्मी,
बर्फ बन के पिघल गये रास्ते|
चलते-चलते सफर में,
कौसों निकल गये रास्ते|
कौन रोक सका है भला,
इन रास्तों के रास्ते|
हर मोड़ पर घर-घर में,
बन गए हजारो रस्ते|
जो रुक गये हम एक दम 'शकील
हम से आगे निकल गये रास्ते.
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