फिर कहाँ किसी को आज़माना होता|
न कोई बेगाना न कोई दीवाना होता,
फिर बीच में सिर्फ इश्के पैमाना होता|
वफाई-बेवफाई का न कोई अफसाना होता,
फिर शमा जलती मगर कहाँ परवाना होता|
न उल्फत न जफ़ा का कोई फ़साना होता,
बीच में पैमाना और उसी को आज़माना होता|
कसमों-वादों को फिर कहाँ'शकील' आज़माना होता,
हम आमने-सामने होते मगर बीच में पैमाना होता|