हम जब तेरे दस्त से गुज़र जाते है,
चेहरे पर निशाने ग़म उभर जाते है|
हमने तो पाया इश्क़ मे नशा-ए-क़दीम,
वो कैसे नशे होते जो है उतर जाते है|
इतने खौफ़ जदा है मै से शेख़ साहिब,
नाम मैकदे का लेते है तो डर जाते है|
मैकदा बंद और साक़ी भी है परेशां,
देखना है कि अब रिंद किधर जाते है|
शबे हुस्न से सीख लीजिए निज़ामे जहाँ'शकील',
सहर सादिक ही खुद ब खुद संवर जाते है|
Thursday, March 11, 2010
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सुन्दर अभिव्यक्ति पर बधाई
ReplyDeleteपीने के बाद भी मेरी ,मिटती नहीं तलब
मुझको नशे से ज्यादा नशा,प्यास में रहा
श्याम सखा
मुझको नशे से ज्यादा नशा,पूरी गज़ल यहां देख सकते हैं
http://gazalkbahane.blogspot.com/
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
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