Wednesday, April 14, 2010

यारों की मेहरबानी

परहेज़गारों को छोड़ा और मैख्वारों में पहुँचा,
ख्वाहिशे मै के ख़ातिर गुनहगारों में पहुँचा|

चमन में रहता था गुलशने यार होता था,
खारजारों में पहुँचा, बयाबानों में पहुँचा|

मैं बेगाना था रिन्दों की महफ़िल में कभी,
ग़नीमत है की महफिले मैख्वारों में पहुँचा|

अगर यहाँ मै से प्यार भी एक जुर्म है यारों,
फ़िर तो खातावारों में,सितमगरों में पहुँचा|

महलों के रंगीन नज़ारे कल की बात थी,
साकी के ज़ुल्मत भरे नाज्ज़रों में पहुँचा|

जो चाहते है पुर सकूँ ज़िन्दगी, उनको मुबारक हो,
मंजिले जुस्तजू था मैं की आवारों में पहुँचा|

भटकता फ़िर रहा था आरज़ू--मंजील में'शकील',
यह यारों की मेहरबानी है की में यारों में पहुँचा|

No comments:

Post a Comment