Friday, April 23, 2010

यार

तुम दिल में यार बन के रहते हो,
तन्हाइयों में ख़याल बन के रहते हो|

दिलों की कशिश कहाँ है नुमायाँ,
जिगर में तुम दर्द बन के रहते हो|

चेनो-करार से तौबा मेरी तौबा ,
सकून में भी बेचेन बन के रहते हो|

नजरे मिले या झुके ज़मी पर,
तुम आँखों में नूर बन के रहते हो|

शब की तारिकियों में है सन्नाटा ,
नींद में तुम ख्वाब बन के रहते हो|

गमे जुदाई हो या मिलन की ख़ुशी,
तुम दिल में लहू बन के रहते हो|

किस को सुनाये दास्ताँ--दिल,
तुम कहीं रहो मगर नज़र में रहते हो|

यूँ तो तग़य्युराते ख़याल है बहुत,
मगर तुम तसव्वुर बन के रहते हो|

ये ज़रूरी नहीं'शकील' तुम कुछ कहो,
खामोश मगर तुम जुबां पर रहते हो|

( तग़य्युराते-बदलाव )

2 comments:

  1. बहुत ही अर्थपूर्ण ग़ज़ल है. बधाई!

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  2. yoon hi likhte rahen or aise hi badhe aapki saakh
    aap jeeyen hazaron sal or ek sal ke din ho ek laakh

    janmdin ki badhai
    yug- yug se tuchchh
    pradeep

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