Monday, September 28, 2009

रावण



रावण भी आज हम पर खूब मुस्करा रहा है,
उसे हर चेहरे में अपना चेहरा नज़र आ रहा है|

कहाँ ढूंढे वो मर्यादित पुरूष राम को इस भीड़ में,
उसे हर इन्सा अमर्यादित नज़र आ रहा है|

मिट जायगी उसकी हस्ती जल कर एक दम,
उसे हर इन्सा में छिपा बारूद नज़र आ रहा है|

बुराई पर अच्छाई की विजय घोष है चारो तरफ़,
उसे तो अच्छाई पर बुराई का राज नज़र आ रहा|

वो तो शर्मिंदा है अपनी करनी पर सरे-आम,
उसे हर तरफ बेशर्मी का आलम नज़र आ रहा है|

सत्य के उस युग में वो अकेला असत्य था,
उसे आज हर इन्सा झूठा नज़र आ रहा है|

हर इन्सा मुस्करा रहा है आज रावण वध पर'शकील',
पर आज दशानन्द हमारी हालत पर मुस्करा रहा है|

2 comments:

  1. raste baithi ek budhiya kis se kare sawal
    pati laga rahe boliyan bete hue dalal
    baithi bilkhe janki muskuraye pahredar
    ram bajve hazri ravan ke darbar


    gazab likha hai sirji lage rahiye

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  2. बहुत खूब गज़ल कही, वाह!!


    विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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