Friday, September 11, 2009

अरमां

गमे इश्क़ में हम यार मारे जायगे,
इस जहाँ से कहीं जब उस जहाँ जायंगे|

कुछ इरादा जो हमने किया उधर का,
हम नही उनमे जो बिन बुलाये जायगे |

तू जलाती है हमें ऐ शमा ! देखना,
फलक तक हमारी आहों के शौले जायंगे|

इश्क़ क्या है बतायंगे तुझे ऐ दरिये हुस्न ,
एक दिन हम भी समन्दर पार उतर जायंगे|

बहुत है तमन्नाए अभी 'शकील' अपनी बाक़ी,
होंगी सभी ज़मींदोज़, अरमां अधूरे जायगे|





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