Saturday, September 12, 2009

आईना

आईना भी अजब तमाशा है जहाँ में,
हर तमाशे का यहाँ नया अंदाज़ देखा|

आईने में जो अपना नक्शे सिंगार देखा,
बाहरी नक्श को आईने में बाहर देखा|

जो नक्श, आईने में हमने बाहर देखा,
जो देखा,सिर्फ़ एक आरिज़ी ख्वाब देखा|

जब आईने दिल में हमने झांक देखा,
पिनहाँ वक़ार को आईने दिल में साफ़ देखा|

क्या कहूँ आईने दिल का क्या अंदाज़ देखा,
ख़ुदा का नूर और उसका दीदार साफ़ देखा|

बेनज़ीर वक़ार की वो अज़्मत का क़माल,
जो न सुना न कोई दुसरा वक़ार देखा|

हमने दिल में वो उमड़ता इश्क़े यार देखा,
दिल के सिवा न कहीं और प्यारे-यार देखा|

दिल है या इश्क़ है बला का पैमाना 'शकील',
एक जहाँ का इश्क़ और शिकेबे यार देखा|

(पिनहाँ-गुप्त, बेनज़ीर-अनुपम,आरिज़ी-अस्थाई,वकार-गंभीरता
शिकेब-सब्र, अज़मत-सम्मान)




No comments:

Post a Comment