Thursday, June 18, 2009

जिंदगी

ऐ जिंदगी!क्यों इतना गुमान करती है,
ज़मीं पर रह,क्यों आसमां की बात करती है|

अपनी जुबां से कुफ्र करती है ,
क्यों अपनी उम्र की बात करती है|

ला-ऐतबार ज़िन्दगी का,
क्यों ज़िक्र-ऐ-ऐतबार करती है|

तन्हा है सफर,
क्यों कारवां की बात करती है|

फ़ना
है जिस्म-ऐ- कुव्वत,
किसपे आजमाने की बात करती है|
मौत की ख़बर नही,
क्यों ज़िन्दगी की बात करती हें|

है तेरी ख़ुद की जद्दो-जेहद इतनी,
किसके हश्र की बात करती है|

मिट जायेगी तेरी ख़ुद की हस्ती "शकील",
किसको मिटने की बात करती है||

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