Wednesday, October 21, 2009

हिजाब


उनके हुस्न का बे-हिजाब होना था,
फ़िर तो इशक़ को बेताब होना था|

मेरे दिल का हाल न पूछो यारों,
उसका हाल तो बेहाल होना था|

शबाब हुआ जो उनका जलवागर,
हर शय को तो खाक होना था |

हौशा में आए तो आए कोई कैसे,
निगाहों से उनकी फ़िर वार होना था

उनका जमाले जलाल था हर तरफ,
हमारे हाल का मलाल किसे होना था|

खुदा बचाए इनकी शौक अदाओं से 'शकील',
हमें तो हर हाल में हलाल होना था|

(हिजाब-पर्दा, शबाब-जवानी, शय-वस्तु, मलाल-दुःख, जमाल-सौन्दर्य, जलाल-प्रताप)

2 comments:

  1. naam aaye tera to sara tan mahke
    jikra se tere sari anzuman mahke

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  2. अद्भुत! बधाई, आपकी शायरी का जवाब नहीं। यह प्रोढ़ शायरी है।

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