Tuesday, October 13, 2009
शब की तारीकियाँ
जब मेरे ख़्वाब में वो दीदारे यार आया,
तो फ़िर आँखों में नींद न ख़्वाब आया|
शब की तारीकियों में न चैन न कुछ याद आया,
तमाम रात बस आया तो ख्याले यार आया|
मैं हूँ वो गमे इशक़ का मारा, नसीब में जिसके,
आया तो बस यारे गम का सवाल आया|
हज़ारों तारों से शब पर रौनके बहार आई,
महताब से तारीकियों पर शबाब आया|
शमा को रौशन देख परवाने कहने लगे,
क़यामत है या रात में कोई आफ़ताब आया|
झुकी है शब की तारीकियों में आँखे महताब की,
वो कौन है 'शाकील' जिससे उसे हिजाब आया|
( शब की तारीकियाँ-रात का अँधेरा,महताब-चाँद,आफ़ताब-सूरज,हिजाब-पर्दा )
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बहुत उम्दा गज़ल!! वाह!
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