Sunday, October 18, 2009

शबनम


जो औरो के लिए बसर कर दे ज़िन्दगी अपनी,
उनकी जिंदगी कभी मुख्तसर नही होती|

जो चिराग़ बन कर जलते हो सरे-आम,
उन्हें अंधेरो से कभी दिललगी नही होती|

जो जीते हो किसी की हसरत बन कर,
उन्हें किसी से कोई दुश्मनी नहीं होती|

जो चलते हो काँटों भरी राहों पर अक्सर,
उन्हें मंजिलों की जुस्तजू नहीं होती|

जो खिलते है फूल बन कर सरे-राह,
उन्हें काँटों से कभी दोस्ती नहीं होती|

जो गुल महकते है हर हल में 'शकील',
उन्हें शबनम से कोई बंदगी नहीं होती|



2 comments:

  1. achchi likhi hai shayad mere liye hai....
    ha!! ha !!ha!! ha !!ha!! ha !!ha!! ha !!

    pranam sir
    happy diwali

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  2. बहुत खूब! विचारों की पवित्रता और अभिव्यक्ति की सादगी इस रचना को महत्व प्रदान करती है.

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