Wednesday, October 21, 2009

हिजाब


उनके हुस्न का बे-हिजाब होना था,
फ़िर तो इशक़ को बेताब होना था|

मेरे दिल का हाल न पूछो यारों,
उसका हाल तो बेहाल होना था|

शबाब हुआ जो उनका जलवागर,
हर शय को तो खाक होना था |

हौशा में आए तो आए कोई कैसे,
निगाहों से उनकी फ़िर वार होना था

उनका जमाले जलाल था हर तरफ,
हमारे हाल का मलाल किसे होना था|

खुदा बचाए इनकी शौक अदाओं से 'शकील',
हमें तो हर हाल में हलाल होना था|

(हिजाब-पर्दा, शबाब-जवानी, शय-वस्तु, मलाल-दुःख, जमाल-सौन्दर्य, जलाल-प्रताप)

Sunday, October 18, 2009

शबनम


जो औरो के लिए बसर कर दे ज़िन्दगी अपनी,
उनकी जिंदगी कभी मुख्तसर नही होती|

जो चिराग़ बन कर जलते हो सरे-आम,
उन्हें अंधेरो से कभी दिललगी नही होती|

जो जीते हो किसी की हसरत बन कर,
उन्हें किसी से कोई दुश्मनी नहीं होती|

जो चलते हो काँटों भरी राहों पर अक्सर,
उन्हें मंजिलों की जुस्तजू नहीं होती|

जो खिलते है फूल बन कर सरे-राह,
उन्हें काँटों से कभी दोस्ती नहीं होती|

जो गुल महकते है हर हल में 'शकील',
उन्हें शबनम से कोई बंदगी नहीं होती|



Saturday, October 17, 2009

मुबारकबाद


तेरे चिराग रोशन रहे ज़माने में,
हमें भी रोशनी मिले तेरे आस्ताने में|

सितारे चमकते रहे तेरे आशियाने में,
हमें भी शरफ मिले तेरे दौलत खाने में|

तेरा इकबाल बुलंद रहे हर ज़माने में,
हमें भी दुआए मिले तेरे इबादत खाने में|

अंधेरों को दूर कर तू नूर बन कर,
हमें भी जिला मिले तेरे सरपरस्ताने में|

मुबारक हो सब को रोशनी और खुशियों का दिन,
सब को मिले खुशियाँ 'शकील'खुदा के ख़जाने में|

(आस्ताना-ऋषी का आश्रम,जिला-आभा,शरफ-सम्मान,सरपरस्ताना-पोषण)

Tuesday, October 13, 2009

शब की तारीकियाँ


जब मेरे ख़्वाब में वो दीदारे यार आया,
तो फ़िर आँखों में नींद न ख़्वाब आया|

शब की तारीकियों में न चैन न कुछ याद आया,
तमाम रात बस आया तो ख्याले यार आया|

मैं हूँ वो गमे इशक़ का मारा, नसीब में जिसके,
आया तो बस यारे गम का सवाल आया|

हज़ारों तारों से शब पर रौनके बहार आई,
महताब से तारीकियों पर शबाब आया|

शमा को रौशन देख परवाने कहने लगे,
क़यामत है या रात में कोई आफ़ताब आया|

झुकी है शब की तारीकियों में आँखे महताब की,
वो कौन है 'शाकील' जिससे उसे हिजाब आया|

( शब की तारीकियाँ-रात का अँधेरा,महताब-चाँद,आफ़ताब-सूरज,हिजाब-पर्दा )