Monday, December 28, 2009

पैमाना-ए-इश्क़

गर इश्क़ का कोई कोई पैमाना होता,
फिर कहाँ किसी को आज़माना होता|

कोई बेगाना कोई दीवाना होता,
फिर बीच में सिर्फ इश्के पैमाना होता|

वफाई-बेवफाई का कोई अफसाना होता,
फिर शमा जलती मगर कहाँ परवाना होता|

उल्फत जफ़ा का कोई फ़साना होता,
बीच में पैमाना और उसी को आज़माना होता|

कसमों-वादों को फिर कहाँ'शकील' आज़माना होता,
हम आमने-सामने होते मगर बीच में पैमाना होता|

2 comments:

  1. la pila de saaki pemana pemane ke bad or
    bat matlab ki karoonga hosh me aane ke bad

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  2. very good. kya likhate ho, maja aa gaya.

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