Tuesday, January 5, 2010

साहिले-ए-दरिया

आज वो भी ग़म के मारे नज़र आने लगे,
उड़ गई नींद इशक़ में तारे नज़र आने लगे|

लब खामोश, दिल परेशाँ, आंखों में नींद,
अब तो वो कुछ ज़्यादा प्यारे नज़र आने लगे|

लबों से अब वो भी साजे इशक़ गुनगुनाने लगे,
आँखों ही आँखों में वो न जाने क्यों शर्माने लगे|

हम तो समझते थे उनको दरिया- ए- तूफाँ,
आज हमे वो साहिल-ए-दरिया नज़र आने लगे|

कल तलक था उनका खुद दिल पर इख़्तियार,
आज वो ही'शकील' दिल के मारे नज़र आने लगे|



3 comments:

  1. gazzab ka likha hai sir
    vo or bhi pyare nazar ane lage
    gazzab vaakai

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  2. sir ye word verification hata deejiye
    thoda theek rahega comment post karne me

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  3. आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

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