मेरे ग़मे इशक़ की अब कोई इंतिहा नहीं ,
ये वो निशाँ है जिसका अब कोई गवाहा नहीं ।
ज़ख़्म है गेहेर मगर इनकी कोई ज़बां नहीं ,
वो कोनसा ज़ख़्म है जो हम ने सहा नहीं ।
मर्ज़े दर्द है गहरा इसकी अब कोई दवा नहीं ,
इस शदीद दर्द से हमें अब कोई शिफ़ा नहीं ।
लबो पर नाम है उनका मगर कोई पता नहीं ,
ये वो सवाल है जिसका अब कोई रास्ता नही ।
आरज़ू ए मंज़िल है मगर मुकामे जहाँ नहीं ,
रास्ते बहुत है 'शकील' अब कोई चाह नहीं
ये वो निशाँ है जिसका अब कोई गवाहा नहीं ।
ज़ख़्म है गेहेर मगर इनकी कोई ज़बां नहीं ,
वो कोनसा ज़ख़्म है जो हम ने सहा नहीं ।
मर्ज़े दर्द है गहरा इसकी अब कोई दवा नहीं ,
इस शदीद दर्द से हमें अब कोई शिफ़ा नहीं ।
लबो पर नाम है उनका मगर कोई पता नहीं ,
ये वो सवाल है जिसका अब कोई रास्ता नही ।
आरज़ू ए मंज़िल है मगर मुकामे जहाँ नहीं ,
रास्ते बहुत है 'शकील' अब कोई चाह नहीं
No comments:
Post a Comment