इश्क़ में लोग हमें दीवाना कहने लगे ,
आशिक़ों को कब बख्शा है ज़माने ने,
हर अदा को ही आशिक़ाना कहने लगे|
जो गुज़रे हम तेरे दर से जब एक दम,
तेरे दर को हमारा आस्ताना कहने लगे|
फ़ना है हर ज़र्रा इस कायनाते जहाँ का,
हमारे इश्क़ को क्यों अफसाना कहने लगे|
ख़ुदा महफूज़ रखे इश्क़ को हर दिल में,
हमारे दिल को क्यों आशियाना कहने लगे|
आखों में कशिश,सीने में तपिश है फित्रते दिल,
फिर क्यों'शकील' हमें सब दीवाना कहने लगे|
अपने ही खुद हमें बेगाना कहने लगे|
हर अदा को ही आशिक़ाना कहने लगे|
तेरे दर को हमारा आस्ताना कहने लगे|
इश्क़ तो फ़ित्रत है इंसा के मिज़ाज की,
क्यों सब हमें उनका दीवाना कहने लगे|
किसका ज़ोर चला है भला इश्क़ पर,
क्यों सब हमें उनका दीवाना कहने लगे|
किसका ज़ोर चला है भला इश्क़ पर,
मुहब्बत को क्यों ग़म उठाना कहने लगे|
हुस्न को है कहाँ तबो-ताब इश्क़ के बिना,
क्यों हमारे कलाम को सूफ़ियाना कहने लगे|
फ़ना है हर ज़र्रा इस कायनाते जहाँ का,
हमारे इश्क़ को क्यों अफसाना कहने लगे|
ख़ुदा महफूज़ रखे इश्क़ को हर दिल में,
हमारे दिल को क्यों आशियाना कहने लगे|
आखों में कशिश,सीने में तपिश है फित्रते दिल,
फिर क्यों'शकील' हमें सब दीवाना कहने लगे|
क्या बात है शकील जी...
ReplyDeleteखुदा महफ़ूज़ रखे इश्क को हर दिल में
हमारे दिल को क्यों आशियाना कहनें लगे...
वाकई बेहतरीन..