Sunday, April 25, 2010

मिज़ाजे ग़म

मिज़ाजे ग़म की जिन्हें कोई ख़बर नही होती,
ख़ुशी में भी कही उन्हें ख़ुशी मय्यसर नही होती|

जो जलते है चिराग़ बन के तेरी महफिल में,
उनके घर में कभी चिरागे रौशनी नही होती|

ग़म-- इश्क में जब तक हुस्न शामिल हो,
ग़म-- मोहब्बत में कभी दिलकशी नही होती|

बे-वफाई के इस जहाँ में वफ़ा का नाम ले,
वफ़ा के नाम से अब हमें कोई ख़ुशी नही होती|

मेहरबनिया तो बड़ी चीज़ है दोस्ती के पहलू में,
दुश्मनी में भी तो अब कुछ शाइस्दगी नही होती|

शरीके ग़म बनाने चले हो जहाँ में किसे 'शकील'
शरीके ग़म ये दुनिया कभी किसी के नही होती|

उम्रे हयात

उम्रे हयात की जब शाम आती है,
नमाज़ तौबा काम आती है|

तेरी रहबरी भी रहज़नी से कम नही,
मेरी आवारगी भी रहनुमाई के काम आती है|

उजाला ही नही सब कुछ राहे तमन्ना में,
तीरगी हो तो अक्सर बसीरत काम आती है|

समझ लेते है हम मुश्किलों को मुसीबत,
मुश्किलें ही अक्सर मुसीबतों के काम आती है|

उनकी वादा खिलाफी पे है क्यो हंगामा बरपा,
खुदगर्ज़ी भी तो आज़माने के काम आती है|

वफ़ा की तो सब करते है उम्मीद 'शकील',
बे-वफाई भी तो दुश्मनी निभाने के काम आती है|

( हयात-ज़िंदगी,रहबरी-पथ-प्रदर्शन,रहज़नी-लूटेरापन,
तीरगी-अंधकार,बसीरत-दिल की नज़र/प्रतिभा,खुदगर्ज़ी-स्वार्थपरता )

Friday, April 23, 2010

यार

तुम दिल में यार बन के रहते हो,
तन्हाइयों में ख़याल बन के रहते हो|

दिलों की कशिश कहाँ है नुमायाँ,
जिगर में तुम दर्द बन के रहते हो|

चेनो-करार से तौबा मेरी तौबा ,
सकून में भी बेचेन बन के रहते हो|

नजरे मिले या झुके ज़मी पर,
तुम आँखों में नूर बन के रहते हो|

शब की तारिकियों में है सन्नाटा ,
नींद में तुम ख्वाब बन के रहते हो|

गमे जुदाई हो या मिलन की ख़ुशी,
तुम दिल में लहू बन के रहते हो|

किस को सुनाये दास्ताँ--दिल,
तुम कहीं रहो मगर नज़र में रहते हो|

यूँ तो तग़य्युराते ख़याल है बहुत,
मगर तुम तसव्वुर बन के रहते हो|

ये ज़रूरी नहीं'शकील' तुम कुछ कहो,
खामोश मगर तुम जुबां पर रहते हो|

( तग़य्युराते-बदलाव )

Thursday, April 22, 2010

हसरत

पड़ी थी अभी बुनियाद आशियाने की,
सिमट के आगई सब बिजलियाँ ज़माने की|

जवानी में था जब जोश--मैयकशी अपना,
बड़ी हसीन थी दुनिया शराबखाने की|

परवाज़ ने ली थी अंगडाई अभी शबाब की,
नज़र लग गई हुसन पे सय्यादे कैदखाने की|

किसी से कीजिये क्या रस्मे दोस्ती का गिला,
बदल रही हैं मुकर्रम हवाये ज़माने की|

हसरत थी चुनने की सरसब्द गुलिस्ताने 'शकील',
दिल की दिल में रह गई हसरत दीवाने की|

( सरसब्द-फूलों की टोकरी में सबसे खुबसूरत और उत्तम फूल )

Saturday, April 17, 2010

कामयाब

वही रहरौं जहदे ज़िन्दगी में कामरां होगें,
इरादे जिनके पुख्ता हौसले जवाँ होगें|

जो हौसले रखते ही मौसमे खिज़ां मे,
वो ही कल इस चमन के बागबाँ होगें|

लुटा दे अपनी हस्ती जो वतन के लिए ,
वो ही इस ज़मीं के कल शाहंशाह होगें|

जो देते सहारा किसी को हर हाल मे,
वो ही'शकील'हर राज़ के राजदां होगें|

संभल जाओं वतन के रखवालों,
वरना हस्ती तारीख़ के निशाँ होगें|

(रहरौं -मुसाफिर,जहदे-कोशिश, कामरां -कामयाब)

Thursday, April 15, 2010

सफ़र-ए- कारवाँ

निकले थे राहे ख़ुदा में,आलमे मैख्वार मिल गया,
पूछा था मस्जिद का पता कि मैकदा मिल गया|

निगाहे यास को जब कोई गुलिस्ताँ मिल गया,
बहारे-सराब में विरान --खिजाँ मिल गया |

इश्क़ को ताब कहाँ सोज़े हुस्न का जहाँ में,
दिखते ही जलवा--हुस्न दीवाना मिल गया |

जलती है शमा शब की तारीकियों में सारी शब,
एहले जुनून में जलने को परवाना मिल गया |

निकले थे हम अपनों की तलाश में ' शकील ',
सफ़र-- कारवाँ ही सारा बैगाना मिल गया |

(आलमे मैख्वार-शराबियों का समूह,मैकदा-मधुशाला,
निगाहे यास-नवमल्लिका की दृष्ठि, ताब-गर्मी,
शब की तारिकिया-रात का अँधेरा,बहारे सराब-बसंत ऋतु का भ्रम,
सोज़े हुस्न-सौन्दर्य की तपिश)

बे-वफाई

मुझ पर तेरी ज़ुल्मत कहाँ तक,
ये जफ़ा ये सितम कहाँ तक|

ये तेरे हुस्न की अदाए है याराँ,
तेरा ग़म आख़िर उठाये कहाँ तक|

सितम है या करम आजमाए कहाँ तक,
ज़ख्मे दिल अपने गिनाये कहाँ तक|

तोहमत है हम पर बे-वफाई का तेरा,
गिला अपने दिल का सुनाये कहाँ तक|

ये हुस्नों अदायों की घटाए कहाँ तक,
ये बिजलियाँ हम पर'शकील' गिरेगीं कहाँ तक|

Wednesday, April 14, 2010

यारों की मेहरबानी

परहेज़गारों को छोड़ा और मैख्वारों में पहुँचा,
ख्वाहिशे मै के ख़ातिर गुनहगारों में पहुँचा|

चमन में रहता था गुलशने यार होता था,
खारजारों में पहुँचा, बयाबानों में पहुँचा|

मैं बेगाना था रिन्दों की महफ़िल में कभी,
ग़नीमत है की महफिले मैख्वारों में पहुँचा|

अगर यहाँ मै से प्यार भी एक जुर्म है यारों,
फ़िर तो खातावारों में,सितमगरों में पहुँचा|

महलों के रंगीन नज़ारे कल की बात थी,
साकी के ज़ुल्मत भरे नाज्ज़रों में पहुँचा|

जो चाहते है पुर सकूँ ज़िन्दगी, उनको मुबारक हो,
मंजिले जुस्तजू था मैं की आवारों में पहुँचा|

भटकता फ़िर रहा था आरज़ू--मंजील में'शकील',
यह यारों की मेहरबानी है की में यारों में पहुँचा|

Tuesday, April 13, 2010

मुहब्बत

मुहब्बत की कहाँ कोई ज़बाँ होती है,
दिल की बात नज़रों से बयाँ होती है|

दिले बेताबियों का आलम मत पूछो,
नज़रों में फिर भी हया वफ़ा होती है|

ज़माने की बंदिशे हो चाहे लाख,
मुहब्बत तो हर रोज़ जवाँ होती है|

क्यों पूछते हो हाले दिल उनका,
हर हाल पर उनके निगाहाँ होती है|

मिट जाये चाहे जमाने में खुद की हस्ती,
मुहब्बत फिर भी बेगुनाहाँ होती है|

मुहब्बते मर्ज़ तो मर्ज़ है दिल का'शकील',
कहाँ इलाज कहाँ कोई शिफ़ा होती है|

Monday, April 5, 2010

मैकशी

तेरे मैकदे से मुझे फिर ठुकराया गया है,
मैकशी से तेरे मैकदे में लाया गया है

लोग पीते है लड़खड़ाते हैं तेरे मैखाने में,
जामे-पैमाने से मुझे होश में लाया गया है

मैख्वार तो बहुत हैं तेरे मैखाने में साकी,
तेरे मैखाने में मुझे क्यों आज़माया गया है

मय्यसर है लबालब मै तेरे मैकदे में साकी,
मेरे होठो से लगा जाम क्यों हटाया गया है

लोग खाते है क़सम रोज़ न पीने की 'शकील',
मेरी मै-तौबा को आखिर क्यों तुड़वाया गया है